25.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५१९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया /चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 25 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५१९ वां* सार -संक्षेप

*मुख्य विचारणीय विषय*= पं दीनदयाल जी की तरह हम भी राष्ट्र और समाज के उत्थान हेतु  निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि हित में कार्य करें


आज महापुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मदिवस है — वह दिन, जब भारत की राजनैतिक, वैचारिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा देने वाली एक महान् विभूति का अवतरण हुआ था। उनका जीवन राष्ट्रीय सेवा, विचारशीलता और एकात्म मानव दर्शन का मूर्त रूप था।

उनका जन्म २५ सितम्बर १९१६ को हुआ, और उन्होंने ऐसा विचार-दर्शन दिया जिसमें व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के मध्य संतुलन एवं समरसता का भाव प्रमुख था

उनकी जयंती केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, अपितु उनके सिद्धांतों को आत्मसात् करने, राष्ट्र की एकात्मता और सांस्कृतिक मूल्यों की पुनः स्थापना हेतु संकल्प लेने का दिवस है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र और समाज का उत्थान तभी संभव है जब हम निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि हित में कार्य करें


दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारानुसार, भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को खंडित करने का कार्य मुख्यतः अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति के कारण हुआ। उन्होंने हिन्दू‑मुस्लिम एकता में कृत्रिम खाई उत्पन्न कर दी, जिसे राजनैतिक रूप से और गहरा कर दिया गया। विशेषकर मुसलमानों में पृथकता की भावना, धार्मिक पहचान की राजनैतिक अभिव्यक्ति के रूप में विकसित की गई, जो आगे चलकर मुस्लिम लीग की मांगों और देश के विभाजन में परिणत हुई।


हिमालयी दृढ़ता के प्रतीक दीनदयाल जी के मत में, मुसलमान समाज जब तक अपने को इस भूमि का अविभाज्य अंग नहीं मानेगा, जब तक उसका राजनैतिक वर्चस्व का स्वप्न नहीं टूटेगा तब तक वह भारत से सच्चा आत्मीय भाव नहीं रख सकेगा। उनके अनुसार, भारत से प्रेम एवं समर्पण की भावना उसी समय उत्पन्न होगी जब उनकी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं का पूर्ण निरसन हो जाएगा।


यह दृष्टिकोण केवल आलोचना नहीं, अपितु उस समय की राजनैतिक-सामाजिक परिस्थिति का यथार्थ विश्लेषण है। उनका उद्देश्य किसी सम्प्रदाय को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकात्मता के मार्ग में उपस्थित बाधाओं को स्पष्ट करना था ताकि भारत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धान्त पर संगठित हो सके।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Guilty Men of India's Partition की चर्चा क्यों की, गौस खां का उल्लेख क्यों हुआ, DPS college का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें