26.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५२० वां* सार -संक्षेप

 राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई। करै अन्यथा अस नहिं कोई॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 26 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५२० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २


भारत देश को प्राणों से अधिक प्रेम करें इसकी रक्षा के लिए शक्तिसम्पन्न बनें




जब जीवन में हमें शारीरिक कष्ट, मानसिक अशांति अथवा दैनंदिन परिस्थितियों की विषमता घेरे, तब हमें किसी सांसारिक उपाय से पूर्व आत्मिक शांति की ओर उन्मुख होना चाहिए। *श्री रामचरितमानस* इस दिशा में एक अचूक प्रतिसंधान की भाँति कार्य करता है।  

यह ग्रंथ मात्र एक धार्मिक आख्यान नहीं, अपितु एक पूर्ण जीवन-दर्शन है। इसमें भक्ति, नीति, कर्तव्य, सहिष्णुता, त्याग, प्रेम, शौर्य, सेवा तथा समर्पण जैसे आदर्शों की पूर्णता विद्यमान है। तुलसीदासजी ने मानस में केवल श्रीराम के जीवन का वर्णन ही नहीं किया, अपितु समस्त मानवीय गुणों को अत्यन्त गहराई से अभिव्यक्त किया है।  

जब हम मानस के विभिन्न प्रसंगों का मनन करते हैं तो वह हमारे भीतर गूढ़ विवेक, धैर्य और समाधान की प्रेरणा उत्पन्न करता है।


कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता॥

सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली॥3॥

जब सीताजी सहित श्री रामचन्द्रजी सुवर्ण के सिंहासन पर विराजेंगे और हमारी मनःकामना पूरी होगी। इधर तो सब यह कह रहे हैं कि कल कब होगा, उधर कुचक्री देवता विघ्न मना रहे हैं 


वे कहते हैं- हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देखकर आज वही कीजिए जिससे श्री रामचन्द्रजी राज्य त्यागकर वन को चले जाएँ और देवताओं का सब कार्य सिद्ध हो रावण के आतंक से मुक्ति मिले और तब उसी प्रकार की परिस्थितियां बन जाती हैं  कि भगवान् राम को वन जाना स्वीकारना पड़ता है 

 भारत की भूमि में धर्म की अच्छी प्रकार स्थापना करने के लिए युग युग में भगवान् प्रकट होते हैं अद्भुत है भारत जो विश्व का केन्द्र है हमें भारत के प्रति भक्ति का भाव रखना ही चाहिए 


उस पर है नहीं पसीजा जो,

क्या है वह भू का भार नहीं।


वह हृदय नहीं है पत्थर है,

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अधिवेशन की चर्चा की आचार्य जी ने परामर्श दिया कि संपूर्ण देश का भ्रमण करें  केवल पर्यटन के लिए नहीं अध्ययन के लिए भी लोगों के बीच समरस होने का प्रयास करें 

आचार्य जी ने भैया विभास जी का नाम क्यों लिया बलिनी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें