प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पञ्चमी / षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२१ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३
भ्रमित भयभीत समाज को जाग्रत करना
आइये आनन्द के कुछ क्षणों को प्राप्त करने के लिए प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
भारतवर्ष एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी मूल चेतना गतिशीलता में निहित है। इसी कारण यह देश"चरैवेति" मंत्र का जापक है जिसका अर्थ है निरंतर आगे बढ़ते रहना, कभी स्थिर न होना। यह केवल भौतिक गति का ही नहीं, अपितु मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी द्योतक है।भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा में यह विचार दृढ़ता से व्याप्त रहा है कि जीवन की सार्थकता निरंतर प्रयास, साधना और प्रगति में है।इस दृष्टि से भारतवर्ष केवल भौगोलिक सीमा नहीं, अपितु एक जीवंत चिंतन परंपरा है जो मनुष्य को प्रेरित करती है कि वह कठिनाइयों से घबराए नहीं, अपितु उन्हें साध्य बनाकर अग्रसर होता रहे। यही उसकी शक्ति है l दुर्भाग्य से हमारा समाज इस समय भ्रमित और भयभीत है लेह में अचानक तनावपूर्ण वातावरण हो गया इस देश में देवासुर संग्राम लगातार चलता रहता है कण कण अनाचार ढो रहा है राजमुकुट के संघर्ष से हम अपरिचित नहीं हैं ऐसे में हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर शक्ति का स्वर बन समाज को जाग्रत करने का कार्य करें हमारा जन जन शक्ति पराक्रम सेवा स्वाध्याय समर्पण साधना और संयम का पर्याय बने दैत्यवंश इतरा न पाए इसका प्रयास करें
अपने लक्ष्य का ध्यान रखें हमारा लक्ष्य है वैभवसम्पन्न अखंड भारत
*ओ वीर वंशधर फिर अपना इतिहास पढ़ो*
*अभिमंत्रित कर लो अपनी कुलिश-कृपाणों को*
*आतंकी पारावार ज्वार पर इतराता*
*संधान करो तरकश के पावक वाणों को*
*आ गया समय फिर से अंगार उगलने का*
*अरिदल से कह दो आओ काल बुलाता है*
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने जनमेजय का उल्लेख क्यों किया भैया वीरेन्द्र जी भैया मोहन जी के नाम क्यों आए
समीक्षित पत्र से क्या तात्पर्य है अधिवेशन से संबन्धित तीन प्रश्न कौन से हैं जानने के लिए सुनें