प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 28 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२२ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४
उठें जागें और ज्ञानी जनों से वह ज्ञान प्राप्त करें जो हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति कराए
प्रातःकाल का यह सदाचार संप्रेषण अद्भुत परिणाम देने में सक्षम है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए हम इसके माध्यम से अपने भावों को शुद्ध कर सकते हैं शुद्ध भावों से विचार परिष्कृत होंगे
परिष्कृत विचारों से निः संदेह क्रिया उत्कृष्ट और प्रभावशालिनी होगी ही आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम प्रातः काल जागें, सात्विक भोजन करें,सत्संगति करें स्वाध्याय में मन लगाएं और मनुष्यत्व की अनुभूति करें
हमारे यहां उपनिषद् वे ज्ञानग्रंथ हैं जिनसे शिष्य, गुरु के समीप बैठकर श्रवण मनन और निदिध्यासन के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है। उपनिषद् आत्मविद्या या ब्रह्मविद्या की शिक्षाएं हैं, जो मोक्ष मार्ग की ओर ले जाती हैं।
यह केवल बौद्धिक ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन की गूढ़तम सत्य की खोज और आत्मबोध की प्रक्रिया का प्रतीक है।
इन्हीं उपनिषदों में एक है *कठोपनिषद्* जिसका एक प्रसिद्ध श्लोक है
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
अर्थात्
*उठो, जागो और श्रेष्ठ ज्ञानी पुरुषों से ज्ञान प्राप्त करके इसे समझो।*
हम स्वदेश की सेवा में अनुरक्त शक्ति का स्वर हैं,
गायत्री गीता गंगा के तेजस् से भास्वर हैं,
हम शरीर के रथ पर चढ़ चिर विजय मंत्र पढ़ते हैं,
हम अपना भविष्य अपने हाथों से ही गढ़ते हैं।
ज्ञान का मार्ग अत्यंत कठिन है, जैसे किसी तीक्ष्ण तलवार की धार पर चलना।
यह पथ अत्यन्त सूक्ष्म, कठिन और दुर्गम है ऐसा विवेकशील ज्ञानी लोग कहते हैं।
इसमें आत्मबोध की प्रेरणा दी गई है। मनुष्य को चेताकर कहा गया है कि वह मोह और अज्ञान की नींद से उठे, जीवन के उच्च लक्ष्य को समझे और उसका बोध पाने के लिए योग्य आचार्य से ज्ञान प्राप्त करे।
ऋषित्व वास्तव में क्या है, आचार्य जी ने गोपाल सिंह नेपाली की कौन सी कविता का उल्लेख किया, एक सज्जन नारायण दास जी कौन थे, प्रशिक्षण और शिक्षा में क्या अंतर है जानने के लिए सुनें