प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 29 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२३ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५
स्वयं को स्वावलम्बी, स्वस्थ एवं सुशिक्षित बनाते हुए अन्य व्यक्तियों को भी स्वावलम्बी, आरोग्यपूर्ण एवं शिक्षित बनाने का प्रयास करना चाहिए।
एक ओर सामान्य जन भय एवं भ्रम के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कर्मनिष्ठ एवं कुशल व्यक्ति अपने-अपने मार्ग में निरन्तर अग्रसर हो रहे हैं।हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पूर्वजों के पराक्रम, उनकी महान् विशेषताओं से प्रेरणा ग्रहण कर स्वयं भी पराक्रमी बनें। हमें चिन्तन, मनन, सत्साहित्य का अध्ययन, स्वाध्याय तथा लेखन में प्रवृत्त रहना चाहिए, जिससे हमारा जीवन तेजस्विता प्राप्त कर अन्धकार का निराकरण करने में सहायक हो।
हम जो भी कार्य करें, उसमें यश प्राप्त हो इस हेतु हमें निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए। कीर्ति केवल धन के संचय से नहीं, अपितु सत्कर्मों से प्राप्त होती है। आत्मबोध नितान्त आवश्यक है। साथ ही, यह भी परीक्षण करें कि क्या हमारे विचारों में औरों की सहभागिता है और यदि है तो क्या हम उन विचारों पर सकारात्मक संवाद कर सकते हैं।
इन सबके पश्चात्, हमें अपने परिवेश की सुरक्षा करनी चाहिए। स्वयं को स्वावलम्बी, स्वस्थ एवं सुशिक्षित बनाते हुए अन्य व्यक्तियों को भी स्वावलम्बी, आरोग्यपूर्ण एवं शिक्षित बनाने का प्रयास करना चाहिए। यही जीवन की सच्ची साधना है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने यह भी बताया कि भगवान् की महिमा को हर कोई सहज रूप से नहीं समझता, पर जो समझते हैं, वे अनमोल रत्न के समान उसे हृदय में धारण करते हैं, और यह विवेक समय के साथ लोगों को पश्चात्ताप के रूप में अनुभव होता है।
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना॥
हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना॥4॥
भैया डॉ मधुकर वशिष्ठ जी,भैया प्रदीप वाजपेयी जी,मॉरीशस का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें