प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 सितंबर 2025 का
सदाचार संप्रेषण
*१४९८ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
हम युगभारती सदस्यों की साधना, जो राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व के उत्कर्ष की दिशा में उन्मुख है, केवल विचारों और भावनाओं में सीमित न रहकर, कर्म के माध्यम से प्रतिफलित होनी चाहिए। उदाहरण के लिए कल कानपुर में बैठक है तो आगामी अधिवेशन की आयोजन समिति के सदस्यों को उस बैठक में अवश्य पहुंचना चाहिए l यदि परमेश्वर द्वारा प्रदत्त यह भारत के भविष्य निर्माण की साधना केवल मानसिक स्तर पर ही रह जाए और व्यवहार में प्रकट न हो, तो वह सिद्धि तक नहीं पहुँच पाती, जिससे साधक निराश और हताश हो सकता है। इसलिए, बाधाओं के बावजूद, हम राष्ट्र-सेवकों को साधना का निरंतर परिपालन करना चाहिए, जिससे यह हमारे जीवन में स्थायी रूप से स्थापित हो सके और हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकें।
सच्चे राष्ट्रसेवक का चिंतन शरीर की स्थिति से नहीं, अपितु आत्मा की प्रेरणा से चलता है। प्रेम आत्मीयता हमारे लिए अनिवार्य है राष्ट्रधर्म हमारे लिए साधना है राष्ट्र की भावना केवल उत्सवों या मंचों तक सीमित न रहे, अपितु जीवन की अंतिम सांसों तक चेतना में बसी रहनी चाहिए। जिस प्रकार डा हेडगेवार के जीवन में अंतिम सांसों तक उनकी चेतना में वह साधना बसी रही
डा. हेडगेवार जी अपने जीवन के अंतिम समय में जब अस्वस्थ थे,
उनके लिए Lumbar puncture (LP) अथवा spinal tap नामक चिकित्सीय प्रक्रिया की जाती थी इस प्रक्रिया में कमर के निचले भाग में एक पतली सुई डाली जाती है ताकि cerebrospinal fluid (CSF) का नमूना एकत्र किया जा सके। ( CSF वह तरल है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को घेरता और संरक्षित करता है।)
तब भी उनकी वाणी से राष्ट्र-धर्म के स्वर नहीं थमे। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम अवस्था में भी यही उद्घोष किया — *"भारत हिन्दू राष्ट्र है।"* यह कथन मात्र शब्द नहीं, बल्कि उनके जीवन भर के चिंतन, साधना और समर्पण का सार था।
जब वे रोगशय्या पर थे, उस समय स्वयं श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) उनकी सेवा में तत्पर थे।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विषय में और क्या बताया जानने के लिए सुनें