यह देश यहाँ पर सब सबके हित जीते हैं
परहित में विष का प्याला हँसकर पीते हैं,
यह देश यहाँ पर शौर्य शक्ति आभूषण है
एक ही बाण से धुँवा हुए खर दूषण हैं
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१४९९ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
भारतीय संस्कृति में गहन आध्यात्मिकता अन्तर्निहित है भारत एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ सत्, रजस् और तमस् का संतुलन कर जीवन के रहस्य उद्घाटित किए गए। यह वह भूमि है जहाँ जड़ में चेतन का अनुभूति-सम्पन्न चिन्तन विकसित हुआ, असार संसार में सार का विवेचन हुआ।यह देश कर्तव्यप्रधान है जहाँ धर्म केवल पूजा न होकर आचरणमूलक है। यहां संयम और संतुलित जीवन ही श्रेष्ठता का मापदंड बना। यहाँ चिन्तन की मूल प्रवृत्ति सबके कल्याण में समाहित है, आत्महित में ही परहित का समन्वय है।
संतुष्टि यहाँ की अंतर्निहित सम्पदा है और त्यागमय तपस्या इसका वास्तविक वैभव है। यह देश परहित को सर्वोपरि रखता है, जहाँ अपने लिए नहीं, सबके लिए जीवन जिया जाता है। शौर्य और पराक्रम इसके आभूषण हैं और आज की परिस्थितियों को देखते हुए अत्यन्त आवश्यक हैं, शौर्य प्रमंडित अध्यात्म से हम राष्ट्रभक्त अछूते न रहें क्योंकि यह अनीति का विनाश करने में समर्थ है और हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है संसार को संसार की दृष्टि से देखना आवश्यक है
जब हम अस्ताचल देशों को देखकर भ्रमित हो गए तो अपने सनातन धर्म के विराट् स्वरूप के दर्शन से वञ्चित हो गए अतः हम अपना भय भ्रम त्यागें सनातन धर्म को गहराई से जानें अपने लक्ष्य को सदैव स्मृतियों में रखें लक्ष्य है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
अपने स्वदेश की शक्ति शौर्य को पहचानो
अपनी असली इतिहास-प्रथा को भी जानो
मानो अपने वेदों उपनिषदों का दर्शन
जानो अपने अन्तस्तत्वों का आकर्षण ||
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब को क्या पत्र लिखा था जानने के लिए सुनें