प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५०० वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
भगवान् राम द्वारा सम्पन्न की गई दीर्घ यात्रा केवल एक भौगोलिक गमन नहीं था, अपितु वह एक गहन सांस्कृतिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक पुनरुत्थान की प्रक्रिया थी। इस यात्रा के माध्यम से विभिन्न स्थलों की सुप्त शक्तियों को जाग्रत कर, उन्हें सजग, संयोजित एवं सक्रिय रूप में प्रतिष्ठित किया गया, जिससे अधर्म की प्रवृत्तियाँ स्वयं शमित हो सकें। यही प्रक्रिया संगठनोन्मुख जीवन की अभिव्यक्ति है, जहाँ सामूहिक चेतना एक विराट् उद्देश्य से संयुत होकर, समष्टि के कल्याण हेतु सन्नद्ध होती है। भगवान् राम का यह संकल्प ही संगठन का दार्शनिक व सांस्कृतिक तात्पर्य प्रतिपादित करता है। हमारे युगभारती संगठन का उद्देश्य इससे पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है संगठन का आधार प्रेम और विश्वास है यह प्रेम और विश्वास हमारे भीतर उतना ही होगा जितना हमारे भीतर आत्मविश्वास होगा और आत्मविश्वास बाह्य विकारों से वृद्धिंगत नहीं होता इसके लिए हमें विकारों से दूर होना होगा प्रातःकाल जागरण अत्यन्त आवश्यक है सदाचारी वृत्तियां अनिवार्य हैं इन्हीं सदाचारी वृत्तियों में ये सदाचार संप्रेषण भी आते हैं आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं तो हम लाभान्वित होने का प्रयास भी करें
प्रेम आत्मीयता के साथ अनुशासन जब संयुत होता है तो सुखद व्युष्टि प्राप्त होती है जो जितना कर्म करेगा उसका उसी प्रकार प्रभाव होगा हम स्वार्थरत जनों का बृहत् समूह करेंगे तो इससे उत्तम लक्ष्य बाधित होगा इस कारण हमें इस ओर भी ध्यान देना होगा हम रामत्व के अंशांश को अपने अन्दर प्रविष्ट करा ही सकते हैं प्रेम आत्मीयता का वही स्वरूप जैसा रामराज्य मे था हमारी संस्था युगभारती में आवश्यक है जिसके माध्यम से हम कार्यक्रमों को करके अपने सनातन धर्मी राष्ट्र-भक्त समाज को यह बताना चाहते हैं कि उन्हें भ्रमित भयभीत होने की आवश्यकता नहीं हम उनके रक्षक हैं
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥
रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब लोग परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति में तत्पर रहकर अपने अपने धर्म का पालन करते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बारावफात का उल्लेख क्यों किया बन्दर क्या कर रहे थे रात दस बजे किसने आचार्य जी को फोन किया जानने के लिए सुनें