7.9.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५०१ वां* सार -संक्षेप स्थान : सरौंहां

 न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः

वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।

नासौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति

सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति॥

वह सभा, सभा नहीं, जिसमें कोई वृद्ध न हो।वे वृद्ध, वृद्ध नहीं जो धर्म की बात नहीं बोलते।वह धर्म, धर्म नहीं, जिसमें सत्य न हो। वह सत्य, सत्य नहीं जो कपटपूर्ण हो


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार  7 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५०१ वां* सार -संक्षेप

स्थान : सरौंहां


सत्य का आधार लेकर हम सनातनधर्मी जब किसी कार्य को करते हैं तो उसमें साधन नहीं खोजते साध्य की आराधना में साधना का आधार लेते हैं

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥

हम सनातनधर्मी यह भी मानते हैं कि संसार की समस्त वस्तुएँ परमात्मा से व्याप्त हैं अतः मनुष्य को त्यागभाव से उनका उपभोग करना चाहिए। यह त्याग केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं, अपितु आसक्ति और स्वामित्व की भावना का भी है। मनुष्य को चाहिए कि वह लोभ और संग्रह की प्रवृत्ति से दूर रहकर, ईश्वर द्वारा प्रदत्त संसाधनों का संयमित और न्यायसंगत उपयोग करे। सनातन धर्म में यह विश्वास है कि जब व्यक्ति त्याग और संतुलन के साथ जीवन यापन करता है, तो वह न केवल आत्मिक उन्नति प्राप्त करता है, बल्कि समाज और प्रकृति के साथ भी समरसता स्थापित करता है हमारे जीवन के ऐसे अनेक मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।

भगवान् राम का जीवन त्यागमय इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने निजी सुख, अधिकार, और सहज सुविधाओं का त्याग कर धर्म, समाज और मर्यादा के लिए जीवन भर तप और संघर्ष किया। यशस्वी जयस्वी  राजा दशरथ के घर उनका जन्म हुआ किन्तु जनकल्याण को सर्वोपरि मानते हुए, अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख दुःख को  उन्होंने गौण कर दिया।इस प्रकार भगवान् राम का संपूर्ण जीवन आत्मनिग्रह, कर्तव्यपरायणता और समाज हेतु त्याग का उज्ज्वल आदर्श है, जो उन्हें ‘त्यागमूर्ति’ बनाता है।उनका पूजनीय पक्ष वनगमन से प्रारम्भ होता है l इसी प्रकार भगवान् कृष्ण का जीवन है l 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।


धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।

भारत पर अनेक घटाटोप आते रहे हैं इन संघर्षों में हमारी शक्ति बुद्धि तप कौशल अनेक जातियों को अपने में समाहित करता रहा है

 धीरे धीरे हम साधना से विमुख होते गए और साधनों का आश्रय लेने लगे जिस कारण हमें हानि पहुंची

युगभारती संस्था के माध्यम से हम साधना की ओर उन्मुख होने का प्रयास कर रहे हैं हम  राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् और समाजोन्मुखी होने का प्रयास कर रहे हैं  

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी अधिवेशन के विषय में क्या बताया सत्यनारायण व्रत कथा की चर्चा क्यों की पद्मपुराण आदि का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें