प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५०२ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
संसार अत्यन्त अद्भुत है जहां अनेक भ्रान्तियां व्याप्त हैं
कबीरदास कहते हैं
चलती को गाड़ी कहै नगद माल को खोया
रंगी को नारंगी कहै देख कबीरा रोया
(इसी को फिल्म जागते रहो के गाने जिंदगी खाब है में इस तरह कहा गया है
रंगी को नारंगी कहे बने दूध को खोया
चलती को गाड़ी कहे देख कबीरा रोया)
और इस संसार में आवागमन की लीला अनवरत रूप से चलती रहती है जहां जीव सतत जन्म-मरण के चक्र में परिणत होता रहता है।
मनुष्य तो और भी अधिक अद्भुत है सांसारिक प्रवृत्तियों में निरन्तर रत रहने के कारण वह अपने को ही संसार समझने लगता है वह अपनी अंतर्निहित शक्तियों और संभावनाओं के बोध से विमुख हो जाता है। तथापि, जब वह आत्मनिरीक्षण द्वारा अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करता है, तब आत्मबोध की स्थिति उत्पन्न होती है। यह आत्मबोध ही उसे बाह्य संकटों और जटिल परिस्थितियों से उबरने के लिए समाधान की दिशा में प्रवृत्त करता है। आत्मबोध, वस्तुतः, समस्याओं के पारमार्थिक निवारण का मूल आधार बन जाता है। हमें अपने चिन्तन पक्ष को सुदृढ़ रखना है किन्तु कर्म से विरत नहीं होना है
हमारी युगभारती संस्था का ओरछा में अधिवेशन होने जा रहा है जिसमें हम पूरी तत्परता से जुट जाएं जिससे समाज और राष्ट्र लाभान्वित हो सके
युगभारती की परिकल्पना है कि हमारे भ्रमित भयभीत सनातनधर्मी जन शक्ति सामर्थ्य से युक्त हो जाएं
आचार्य जी प्रतिदिन हमें पं दीनदयाल की साधना का स्मरण कराते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रो नरेन्द्र शुक्ल जी,भैया हिमांशु जी, भैया अश्विनी जी आदि के नाम क्यों लिए, साकल्य की किस कविता का उल्लेख हुआ, सिपाही ने किसको डंडा मारा जानने के लिए सुनें