प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 सितंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५०३ वां* सार -संक्षेप
स्थान : सरौंहां
समय :५:३४ प्रातः
आचार्य जी कहते हैं कि हम सकारात्मक चिन्तन करें ताकि हमारा उत्साह वृद्धिंगत हो सके इष्ट पर आश्रित रहें क्योंकि वह मार्ग सुझा देता है
भारतीय मनीषा की यह विशेष उपलब्धि रही है कि हमारे ऋषियों ने केवल भौतिक पक्षों पर नहीं, अपितु आत्मा, ब्रह्म, जीवन का लक्ष्य, धर्म, कर्म और मोक्ष जैसे सूक्ष्म विषयों पर गहन और अद्भुत चिन्तन किया। उनके चिन्तन का मूल यह था कि मनुष्य अपने अस्तित्व को समझे
बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥4॥
एहि तन कर फल बिषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई॥
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं॥1॥
, आत्मा और शरीर के भेद को जाने तथा जीवन को केवल उपभोग का साधन न मानकर साधना का क्षेत्र माने,शरीर को यन्त्र न मानकर वरदान माने । ब्रह्म को शाश्वत और जगत् को नश्वर मानते हुए, उन्होंने कर्म के अनिवार्य फल, समत्व की भावना और अंततः मोक्ष की प्राप्ति को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य स्वीकारा l
इस प्रकार का चिन्तन विश्व में एक अनूठा योगदान है, जिससे योग, वेद, उपनिषद्, आयुर्वेद आदि जीवनदायिनी परम्पराएं विकसित हुईं। ऐसा अद्भुत है हमारा सनातन धर्म l
यह सनातनत्व जिनके भीतर प्रविष्ट है वो आनन्द में हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है उन्हें गर्व करना चाहिए कि उनका जन्म भारत, जो ईश्वर का वरदान है, में हुआ है
आगामी अधिवेशन हमारे कार्य और व्यवहार का एक आयोजन है यह निराश हताश भ्रमित भयभीत समाज, जिसे हम स्वयं से पृथक नहीं मानते हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सामाजिक कल्याण को अपना कर्तव्य मानते हैं और उसका सुख-दुःख,उत्थान-पतन हमारी संवेदना में समाहित रहता है,में आशा का आलोक संचारित करेगा। उसे यह अनुभूति कराएगा कि इस कलियुग में सत्कर्म अत्यन्त आवश्यक हैं और संगठित रहना भी अनिवार्य है
स्व०भैया अजीत पांडेय जी बैच १९७५ के परिवार को विशेष संबल देने की आवश्यकता है इस पर ध्यान दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उमाशंकर पांडेय जी, श्याम जी का उल्लेख क्यों किया भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया पंकज जी आदि के नाम क्यों लिए जानने के लिए सुनें