प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३४ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १६
अपने मन और तन को संयमित कर शक्ति सामर्थ्य सत्यता शुचिता सेवाभाव आदि का प्रसरण करें
अध्यात्म आनन्द की अनुभूति का विषय है, जबकि शौर्य बाह्य संसार को समुन्नत और सुखमय बनाने का माध्यम। अतः शौर्य से संयुक्त अध्यात्म ही पूर्णता को प्राप्त करता है, जिससे भीतर और बाहर दोनों में संतुलित आनन्द का विस्तार होता है। इसी कारण आचार्य जी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य बताते हैं जो भय और भ्रम का निवारण करने में सक्षम है शौर्य शक्ति सामार्थ्य के द्वारा ही हम अपना प्रभाव छोड़ सकते हैं संगठित शौर्य सामर्थ्य का और अधिक व्यापक प्रभाव होगा इस कारण संगठन अनिवार्य हो जाता है और संगठन प्रेम आत्मीयता के आधार पर चलता है
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता मानस में भी परिलक्षित होती है
संकटों का सामना करते समय भगवान् राम जिस प्रकार आचरण करते हैं, वह अत्यन्त अनुकरणीय एवं शिक्षाप्रद है। वे विपत्ति के काल में भी धैर्य, संयम, करुणा, धर्मनिष्ठा एवं मर्यादा का पालन करते हैं। प्रेम आत्मीयता का आधार लेकर संगठन करते हैं भय और भ्रम से दूर रहते हैं शक्ति शौर्य का अप्रतिम प्रदर्शन करते हैं उनके कार्य और व्यवहार को अपने जीवन में आत्मसात् करना चाहिए।
मानस वास्तव में ऐसी कथा है कि
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम की निर्मल कथा
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥
का आरंभ करते समय ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इसका श्रवण करने से मनुष्य के भीतर विद्यमान विकार जैसे वासना, अहंकार और दिखावा स्वतः ही दूर होने लगते हैं।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने MLA से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया जानने के लिए सुनें