राम चरित अति अमित मुनीसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा॥
तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३५ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १७
समाज के लिए हम एक आदर्श उदाहरण बन सकें इसके लिए
सदाचारमय विचार ग्रहण करें
गोस्वामी तुलसीदास जी उन महान् विभूतियों में से हैं जिन्होंने समाज में व्याप्त अनेक धार्मिक, दार्शनिक और सांप्रदायिक भ्रांतियों का निवारण कर दिया। उन्होंने श्रीरामचरितमानस ग्रन्थ रचकर शिव और विष्णु भक्ति के मध्य विद्यमान कृत्रिम मतभेदों को मिटाया। विशेषतः काशी जैसे धर्म-केन्द्र में, जहाँ शिवोपासक और वैष्णवों के बीच वैचारिक टकराव हो जाते थे, वहाँ मानस ने समन्वय की भूमिका निभाई।
जब विद्वान् वर्ग स्वयं भ्रमित हो जाता है, तब उनके अनुयायी भी विभ्रांत हो जाते हैं और यह स्थिति संघर्ष को जन्म देती है। आज भी जब विवेक और विचारशक्ति दुर्बल होती है, तब वैचारिक द्वंद्व आसानी से उग्र रूप ले लेता है और समाज में अराजकता फैलने लगती है।
यदि हम शास्त्रों का अध्ययन करें, तो पाएँगे कि ऋषियों ने इन परिस्थितियों की पूर्व कल्पना की थी।
*मनुस्मृति* में दंड को अत्यंत महत्त्वपूर्ण और दिव्य स्वरूप प्रदान किया गया है। वहाँ दंड को देवता का रूप माना गया है, क्योंकि वह सामाजिक व्यवस्था, अनुशासन और न्याय का रक्षक है।
दंड ही संसार में शान्ति और संतुलन बनाए रखने वाला तत्व है। जब समाज में दंड का भय नहीं होता, तब शक्तिशाली और अहंकारी लोग निर्बलों को पीड़ित करने लगते हैं, और सामाजिक विषमता व अराजकता फैल जाती है।
इसलिए कहा गया है कि दंड ही राजा का वास्तविक शासन है। राजा यदि दंड नीति का पालन करता है, तो प्रजा भय और अन्याय से मुक्त रहकर शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करती है।
ऐसे अद्भुत हैं हमारे ग्रंथ
आज की परिस्थितियों से हम तुलना करें तो जो उन ग्रंथों में वर्णित है वही आज भी सत्य है
चाहे लोकतान्त्रिक हो या राजतान्त्रिक दोनों में से कोई भी प्रजापालन सरल कार्य नहीं है ढोंगी यदि शासन करने लगे तो वह अत्यन्त भयावह स्थिति है इस कारण शासन के लिए जो पात्र लोग हों वही शासन करें इस समय उचित मार्गदर्शन अत्यन्त आवश्यक है और इस कारण शिक्षकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है
उसके शिक्षार्थी का व्यक्तित्व ऐसा हो जो समाजोन्मुखी चिन्तनपरक स्वाध्यायी संयमी हो उसे अपनी परम्पराओं का भान हो वे ऐसा प्रयास करें
अपने हितकारी ग्रंथों के प्रति जो शिक्षार्थियों में रुचि जाग्रत कर सके ऐसे शिक्षक सामने आएं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया प्रवीण सारस्वत जी का उल्लेख क्यों किया आचार्य चाणक्य की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें