प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३६ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १८
हम सामान्य स्तर से विशिष्ट स्तर पर आ सकें इसके लिए व्यवस्थित दिनचर्या जिसमें प्रातः काल शीघ्र जागरण सम्मिलित है, अत्यावश्यक है
दिनभर हम लोग सांसारिक प्रपंचों में उलझे रहते हैं। यदि प्रातःकाल हम सारभूत चिन्तन की ओर उन्मुख हों तथा सकारात्मक विचारों की ओर प्रवृत्त हों, तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगा।
हमें विचारशील चिन्तनशील संयमी स्वाध्यायी समाजोन्मुखी (समाजोन्मुखता का अर्थ है कि भारतभक्त समाज हमारे कार्य और व्यवहार से प्रसन्न रहे) बनाने के लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
*"ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः"* जिसका अर्थ है:
ऋषि मन्त्रों के द्रष्टा होते हैं।ऋषि वे लोग नहीं थे जिन्होंने वेद रचे बल्कि वे ऐसे महापुरुष थे जिनके अंतःकरण में दिव्य ज्ञान स्वतः प्रकट हुआ। उन्होंने जैसा अनुभव किया उसी अनुभव को शब्द रूप में प्रकट किया।
अतः उन्हें द्रष्टा कहा गया, रचयिता नहीं। यह दृष्टि भारतीय अध्यात्म की विशेषता है — यहाँ ज्ञान को प्राप्त किया जाता है, न कि उत्पन्न
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वेद जो ज्ञान के प्रथम स्रोत हैं अपौरुषेय हैं ऋषि ज्ञान के प्रथम प्रवक्ता हैं वे परोक्षदर्शी भी हैं ऋषि संसार के सार के साथ संसार को भी देखता है
मानस में एक प्रसंग है
एक बार त्रेता जुग माहीं। संभु गए कुंभज रिषि पाहीं॥
संग सती जगजननि भवानी। पूजे रिषि अखिलेस्वर जानी ll
एक बार त्रेता युग में शिव जी अगस्त्य ऋषि के पास गए। उनके साथ जगज्जननी भवानी सती भी थीं। ऋषि ने संपूर्ण जगत् के ईश्वर जानकर उनका पूजन किया।
मुनिवर अगस्त्य ने रामकथा विस्तार से कही, जिसको महेश्वर ने परम सुख मानकर सुना। फिर ऋषि ने शिव जी से सुंदर हरिभक्ति पूछी और शिव जी ने उनको अधिकारी पाकर (रहस्य सहित) भक्ति का निरूपण किया।
आचार्य जी ने प्रयागराज का अर्थ स्पष्ट किया ऋषियों के विभिन्न भेद भी बताए
भैया विनय अजमानी जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया धन को साधन मानना चाहिए या साध्य जानने के लिए सुनें