प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष सप्तमी/अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३७ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १९
संसार के साथ संसार के स्रष्टा की ओर जाने वाला चिन्तन करते हुए आत्मानन्द के स्तर तक पहुंचाने वाला सार्थक लेखन करें
तुलसीदास जी भी हमारी ही भाँति एक सामान्य मनुष्य थे। उस समय देश की परिस्थितियाँ अत्यंत विकट थीं। भारत पर मुगल शासक अकबर का आधिपत्य था, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से दमनकारी था। तथाकथित वीर और शिक्षित वर्ग उस शासक की सेवा में संलग्न थे, जिससे देश की आत्मा खंडित हो रही थी। भारत अनेक भागों में बंटा लग रहा था, और समाज दिशाहीन प्रतीत हो रहा था।
तुलसीदास जी का व्यक्तिगत जीवन भी कठिनाइयों और संघर्षों से परिपूर्ण था। किन्तु उन्होंने अपनी मानवीय चेतना को जाग्रत किया। वे ऐसे मनुष्य नहीं थे जो विवेकहीन होकर पशु तुल्य जीवन जिएं। उन्होंने भक्ति को जीवन का आश्रय बनाया। उस भक्ति से उन्हें शक्ति मिली l उस भक्ति में वह भाव था जो इस संसार को सार की ओर उन्मुख करता है इस भक्ति में शौर्य प्रमंडित आध्यात्मिक भाव था
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक। चरन कमल बंदउँ सब लायक॥
राजीवनयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक॥5॥
फिर मैं मन, वचन और कर्म से कमलनयन, धनुष-बाणधारी, भक्तों की विपत्ति का नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान श्री रघुनाथजी के सर्व समर्थ चरण कमलों की वन्दना करता हूँ
तुलसीदास जी की भक्ति केवल भावुकता नहीं थी, वह व्यावहारिक जीवन में आत्मबल, धैर्य और विवेक का आधार बनी। वे भगवान् शङ्कराचार्य की तरह सनातन धर्म के रक्षक बने l उन्होंने श्रीरामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना कर
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥
जनमानस को न केवल धार्मिक चेतना दी, अपितु सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का भी वे माध्यम बने।
हम भी मनुष्यत्व की अनुभूति करें भाव भक्ति विचार संयम ध्यान धारणा शक्ति का हम अनुभव करें
इसके अतिरिक्त
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