भारत प्रचंड शक्ति शौर्य का स्वरूप दिव्य
शक्ति के महत्त्व को बिसार भक्त क्यों हुआ..
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी /नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३८ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २०
ऐसी शक्ति की , जो समय आने पर उपयोगी सिद्ध हो, आराधना करें। साथ ही राष्ट्रभाव की ज्योति और समाजोन्मुखता की ज्योति को मन्द न होने दें
आचार्य जी हमें सदैव राष्ट्र-भक्ति को केंद्र में रखकर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। वे यह स्पष्ट करते हैं कि "देश" और "राष्ट्र" में एक गूढ़ अंतर होता है। देश केवल एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जिसकी सीमाएँ, प्रशासन और जनसंख्या होती है, जबकि राष्ट्र एक दीर्घ सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैचारिक परम्परा का नाम है।इस परम्परा में हमारे यहां गुरुकुल की शिक्षा थी जो जीवन के हर पहलू को समृद्ध करती थी—शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक। यही शिक्षा हमारी परम्परा की रीढ़ थी, जिसने भारत को युगों तक विश्वगुरु बनाए रखा।
राष्ट्र केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, अपितु उसमें निहित जीवन-मूल्य, परम्पराएँ, स्मृतियाँ, आदर्श और आस्थाएँ ही उसे राष्ट्रत्व प्रदान करती हैं।
राष्ट्र का एक अधिष्ठान होता है वह किसी महान् विचार या उद्देश्य पर टिका होता है। उसका अस्तित्व केवल शासन के लिए नहीं, अपितु एक व्यापक लोक-कल्याण हेतु होता है।
हमारे राष्ट्र का उद्देश्य, हमारे ऋषियों द्वारा प्रतिपादित आदर्श में प्रकट होता है:
"न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥"
संपूर्ण प्राणी मात्र के कष्टों की निवृत्ति और लोक-कल्याण।
हमारे यहां का व्यक्ति अपने जैसे ही अन्य प्राणियों में भी आत्मा की उपस्थिति अनुभव करता है, वह न किसी से द्वेष करता है, न किसी को क्षुद्र समझता है। यह विचार उपनिषदों, भगवद्गीता और भारतीय दर्शन का मूल भाव है।
आचार्य जी ने भैया भरत सिंह जी के साथ गायों का उल्लेख क्यों किया, भैया पंकज जी, भैया पवन जी, भैया प्रदीप जी, भैया प्रवीण भागवत जी,भैया संतोष मिश्र जी,भैया सौरभ जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें