अणोरणीयान् महतो महीयान्
आत्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः ।
तमक्रतुं पश्यति वीतशोको
धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः ॥ - श्वेताश्वतरोपनिषद् ३-२०
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३९ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २१
हम अपनी ज्ञान परम्परा को सरल, रोचक एवं जीवनोपयोगी रूप में बालकों को जिज्ञासु बनाकर समझाएं, तो वे आत्मविश्वास, संयम, शक्ति, सामर्थ्य और विवेक से युक्त हो सकते हैं
हमारे यहाँ वैदिक एवं औपनिषदिक ज्ञान की परम्परा अत्यन्त समृद्ध रही है, जिसमें ज्ञान, भक्ति, योग आदि का समन्वय अत्यन्त सहज एवं सरल रूप में प्रस्तुत किया गया । यह परम्परा केवल दार्शनिक चिन्तन तक सीमित न होकर जीवन की व्यावहारिक दिशाओं को भी आलोकित करती रही है। दुर्भाग्यवश, कालान्तर में जब हम आत्मबलहीन हुए, तब इस महान् परम्परा को हीन दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति समाज में विकसित हुई। इसे प्राचीन, अनुपयोगी या पिछड़ा कहकर प्रचारित किया गया, और हम स्वयं भी भ्रमित हो गए।
वास्तव में, यदि इस ज्ञान परम्परा को सरल, रोचक एवं जीवनोपयोगी रूप में बालकों को समझाया जाए, तो वे जीवन की दिशा में आत्मविश्वास, संयम और विवेक से आगे बढ़ सकते हैं। पश्चिमी जगत् की वस्तुएँ भले ही आकर्षक प्रतीत हों, किन्तु हमारी परम्परा की जड़ें आत्मविकास, चरित्र निर्माण और आध्यात्मिक बल में निहित हैं, जो कहीं अधिक उपयोगी हैं।
आचार्य जी स्वयं इसी परम्परा के साधक हैं, और अपने जीवन में संयम, सात्विकता तथा स्वाध्याय को स्थान देकर निरन्तर उसका अनुकरण करते हैं। वे यही प्रयास करते हैं कि हम भी इन गुणों को आत्मसात करें, हम संयमी सात्विक अध्येता स्वाध्यायी तपस्वी बनें चिन्तन मनन ध्यान धारणा निदिध्यासन सत्संगति में रत हों जिससे हम जीवन में स्थिरता, विवेक और आत्मसंतुलन प्राप्त कर सकें।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
श्वेताश्वतर उपनिषद् की चर्चा की जो ईशादि दस प्रधान उपनिषदों के अनंतर एकादश एवं शेष उपनिषदों में अग्रणी है यह कृष्ण यजुर्वेद का अंग है। छह अध्यायों और ११३ मंत्रों के इस उपनिषद् को यह नाम इसके प्रवक्ता श्वेताश्वतर ऋषि के कारण प्राप्त है। मुमुक्षु संन्यासियों के कारण ब्रह्म क्या है अथवा इस सृष्टि का कारण ब्रह्म है अथवा अन्य कुछ हम कहाँ से आए, किस आधार पर ठहरे हैं, हमारी अंतिम स्थिति क्या होगी, हमारे सुख दु:ख का हेतु क्या है, इत्यादि प्रश्नों के समाधान में ऋषि ने जीव, जगत् और ब्रह्म के स्वरूप तथा ब्रह्मप्राप्ति के साधन बतलाए हैं
युगभारती में क्या आवश्यक है भगवान् राम को विस्तार से वर्णित करता कौन सा उपनिषद् है गोबर का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें