16.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४० वां* सार -संक्षेप

 प्रभु पद प्रीति न सामुझि नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागिहि फीकी॥

हरि हर पद रति मति न कुतर की। तिन्ह कहँ मधुर कथा रघुबर की॥3॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४० वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २२

समाज में प्रतिष्ठा मिले इसका प्रयास करें

अपनी विलक्षण परम्परा से भावी पीढ़ी को अवगत कराएं


आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हम सद्संगति करें


(खलउ करहिं भल पाइ सुसंगू। मिटइ न मलिन सुभाउ अभंगू॥2॥

से इतर)

 हम अपने साहित्य की महत्ता को समझें जो हमें अनन्त काल तक ऊर्जा देने में सक्षम है हम किसी भी प्रकार की हीन भावना, भय या ऐतिहासिक भ्रांति से स्वयं को मुक्त रखें  जैसे कि हम इस भूमि के मूल निवासी नहीं हैं। यह धारणा कि हम बाहर से आए हैं  एक भ्रामक और दुर्भावनापूर्ण विचार है।





किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।

हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं



वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान ।

वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान ।।

इस प्रकार के परिवेश में स्वयं को उपस्थित कर जब हम शक्तिमय शान्ति की अनुभूति करेंगे तो उस शक्ति के आधार पर  जो भी व्यवहार करेंगे वह हमें उलझन में नहीं डालेगा



दुष्ट प्रवृत्तियों के लोगों ने छलपूर्वक धर्म परिवर्तन की एक लहर चलाई, जिससे सनातन धर्म,जिसे मानव जीवन की संजीवनी कहना अतिशयोक्ति नहीं है, की जड़ें हिलाने का प्रयास किया गया जो व्यक्ति केवल भोग-विलास, सुख-सुविधाओं के लोभ में अपने मूल धर्म को त्यागता है, वह न केवल अपनी संस्कृति से कट जाता है, बल्कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य  आत्मबोध और कर्तव्यपरायणता से भी विमुख हो जाता है।धर्म का त्याग  जीवन के मर्म को खो देना है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कपिल सिब्बल का नाम क्यों लिया चौधरा क्या है छायावाद का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें