सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥
*धन्य घरी सोइ जब सतसंगा*। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥4॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी/द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 17 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५४१ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २३
भक्ति का आश्रय लें क्योंकि यह अत्यन्त विश्वासमयी है और शक्तिशाली भी है
(नीति निपुन सोइ परम सयाना। श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा। जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥2॥)
आचार्य जी के प्रयासों से और हम लोगों के भाग्य से यह संभव हुआ है कि हम लोग द्विजत्व अर्थात् आध्यात्मिक रूप से पुनर्जन्म के द्वार पर खड़े हैं, क्योंकि हम लोगों में से अधिकांश का जीवन सात्विक (शुद्ध, संयमित और पवित्र) बन चुका है। हम सत्य के दर्शन की प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं और अपने जीवन को सेवा एवं कर्तव्य के पथ पर अग्रसर कर रहे हैं। यह जीवन-दृष्टि हमें उच्चतर आध्यात्मिक अवस्था की ओर ले जा रही है, जहाँ से आत्मबोध, त्याग और सेवा भाव का समन्वय संभव होता है।आज कल आचार्य जी औपनिषदिक ज्ञान और श्री रामचरित मानस का आधार लेकर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं हमें इसका लाभ उठाना चाहिए संकटों का समाधान करने वाली मानस अद्भुत कथा है अत्यन्त सात्विक तात्विक वैचारिक भावनात्मक व्यावहारिक है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरविन्द तिवारी जी के आग्रह पर विनय पत्रिका के उस अंश का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा है कि
मैं श्रीराम का दास हूँ, लोग मुझे 'रामबोला' कहते हैं। राम-नाम जपने से मेरा जीवन यापन हो जाता है और परलोक का कल्याण भी निश्चित है। पहले मैं अहंकार और जड़ कर्मों के बंधन में था, जिससे अत्यन्त कष्ट भोग रहा था। जब मैंने श्रीराम को पुकारा, तो उन्होंने मुझे पापों से जलता देख तुरंत मेरे कर्मबन्धन काट दिए। अब मैं सदा प्रसन्न रहता हूँ।
रामको गुलाम, नाम रामबोला राख्यौ राम,
काम यहै, नाम द्वै हौं कबहूँ कहत हौं ।
रोटी - लूगा नीके राखै, आगेहूकी बेद भाखै,
भलो ह्वैहै तेरो, ताते आनँद लहत हौं ॥१॥
बाँध्यौ हौं करम जड़ गरब गूढ़ निगड़,
सुनत दुसह हौं तौ साँसति सहत हौं ।
आरत - अनाथ - नाथ, कौसलपाल कृपाल,
लीन्हों छीन दीन देख्यो दुरित दहत हौं ॥२॥
भैया राघवेन्द्र जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ आज कहां बैठक है कल २:३० बजे कौन दो भैया गांव पहुंचे जानने के लिए सुनें