18.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 18 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २४


हमारे अंतर्मन में *सब कुछ* विद्यमान है, हमें उसे खोजने का सतत प्रयास करते रहना चाहिए।



आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि  यशस्विता की चाह रखने वाले हम लोग चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय, लेखन, सद्संगति, भक्ति में रत हों l सत् को ग्रहण करें और असत् को त्याग दें l भक्ति अच्छी है किन्तु एकांगी भक्ति हानिकारक होती है। हमें भक्ति में इतना नहीं डूब जाना चाहिए कि केवल अपने में ही मग्न रहकर संसार और परिवेश से पूर्णतः उदासीन हो जाएं। एक सनातनधर्मी को शौर्य से प्रमंडित अध्यात्म की ओर उन्मुख होना चाहिए। हम सनातनधर्मी हैं और हमको संगठित रहने की अत्यन्त आवश्यकता है यह मोह पालना भी उचित नहीं कि हम स्वयं में पूर्ण हैं और हमें किसी अन्य से कोई सरोकार नहीं। यह दृष्टिकोण अंततः अहंकार और दम्भ का रूप ले सकता है, जो धर्म के विपरीत है। इस संसार में कैसे रहना है और जीवन के सार को कैसे ग्रहण करना है, इसका आत्ममंथन भी आवश्यक है। हम संसार में रहें किन्तु संसार की चमक धमक से अप्रभावित रहें ऐसे मुमुक्षु बनने का प्रयास करें l हमारे भीतर सब कुछ है उसे खोजने का प्रयास करते रहें l

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्रीरघुबीर परायन जेहिं नर उपज बिनीत॥127॥

हे पार्वती! सुनो वह कुल धन्य है, सारे संसार के लिए पूज्य है अत्यन्त पवित्र है, जिसमें उस राम , जिन्होंने आजीवन धनुष बाण का त्याग नहीं किया,जिन्होंने सिद्ध किया कि शक्ति के बिना शान्ति स्थापित नहीं होती, के अनन्य भक्त विनम्र पुरुष जन्म लें ॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 



जानकीस की कृपा जगावती सुजान जीव,

जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।

करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र,

भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १

की चर्चा किस संदर्भ में की जानने के लिए सुनें