19.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४३ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २५

आत्म- चिन्तन करें कि आज समाज के लिए कितना कार्य किया


मनुष्य का जीवन केवल अपने अकेले के अस्तित्व से नहीं चलता, अपितु सह-अस्तित्व के भाव से अर्थात् दूसरों के साथ मिलकर,सहयोगपूर्वक चलने से ही संतुलित होता है। यह विचार हमें न केवल दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाता है, अपितु समाज, प्रकृति और समस्त जीवों के साथ एकता के सूत्र में बांधता है।यह चिंतन व्यक्ति को संकीर्णता से निकालकर व्यापक दृष्टि देता है

कलियुग में  संगठित शक्ति अनिवार्य है साथ साथ मिलकर भोग से इतर तेजस्विता युक्त पुरुषार्थ करें एकाकी शक्ति का उपार्जन नहीं होना चाहिए भक्ति का काल अद्भुत रहा है जिसमें भक्ति के मार्ग से शक्ति की उपासना स्पष्ट की गयी है  तुलसीदास जी कृत

श्रीरामचरितमानस रघुनाथ गाथा है और रघुनाथ गाथा ही संसार की गाथा है स्थान स्थान पर रावण पैदा होता रहता है उस रावणत्व के समापन के लिए रामत्व की उत्पत्ति आवश्यक है


मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर॥130 क॥


प्रभु राम! मेरे समान कोई दीन नहीं है, आपके समान कोई दीनों का हित करने वाला नहीं है। ऐसा सोचकर  मेरे जन्म-मरण के भयानक दुःख का हरण कर लीजिए l



*विनय पत्रिका* हनुमान - बाहुक आदि से पूर्व गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक भावपूर्ण भक्ति ग्रंथ है, जो भगवान् श्रीराम के चरणों में निवेदित प्रार्थना का संगृहीत रूप है। यह ग्रंथ कुल २७९ पदों में विभाजित है, जिसमें भक्त तुलसीदास की करुण पुकार, आत्मसमर्पण, भय, आशंका, भाव-वेदना और प्रभु से कृपा की याचना प्रमुख रूप से व्यक्त होती है।इसमें  तुलसीदास जी ने विभिन्न देवताओं की स्तुति की है, लेकिन मुख्यतः यह भगवान श्रीराम को समर्पित ग्रंथ है। वे सबकी स्तुति को श्रीराम की कृपा प्राप्त करने का माध्यम मानते हैं। तुलसीदास अपने दोषों को स्वीकारते हुए अत्यंत करुण स्वर में प्रभु से कह रहे हैं कि वे इतने अशक्त हैं कि यदि प्रभु ने भी त्याग दिया तो उनका उद्धार कहीं संभव नहीं।

इसके अतिरिक्त मानस का प्रारम्भ और समापन किस एक ही अक्षर से हुआ है भोजन -मन्त्र को आचार्य जी ने कैसे व्याख्यायित किया जानने के लिए सुनें