20.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५४४ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी  / अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 20 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५४४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २६


दीपमिलन जैसे सुअवसरों को कितना प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है आचार्य जी ने इसके लिए कुछ सुझाव  दिए हम अपने आत्मीय जन में उपस्थित वैशिष्ट्य को जानने का प्रयास करें उनकी परिस्थितियों को भी समझें उनके द्वारा किए जा रहे प्रयोगों को जानें

और उन सबका संकलन करें 



जब हमारा संसार मूलतः सारभूत तत्त्वों से विमुख होकर केवल असार, क्षणभंगुर एवं भौतिक विषयों में ही रत हो जाता है, तब हमारी दृष्टि स्वकेन्द्रित हो जाती है। हम स्वार्थ को सर्वोपरि मानने लगते हैं। इस आत्मकेंद्रित प्रवृत्ति के कारण हम माता-पिता को भी भारस्वरूप अनुभव करने लगते हैं, जिनके स्नेह, त्याग, समर्पण एवं संरक्षण के कारण ही हमारा अस्तित्व सम्भव हुआ है।केवल इसलिए कि हम अब आत्मनिर्भर हो गए हैं, उन्हें अप्रासंगिक या अनुपयोगी मान लेना न केवल अकर्तव्य है, अपितु यह सांस्कृतिक एवं मानवीय मूल्यों का पतन भी है।इसी कारण आचार्य जी  इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करते हैं कि हम अपने जीवन के केंद्र में पुनः कर्तव्य, कृतज्ञता और सह-अस्तित्व जैसे मूल्यों को स्थान दें  हम संसार में सार की खोज करें  संसार के साथ इस इस सार को व्यवहार में लाएं शौर्यमय अध्यात्म जिससे संसार अत्यन्त आनन्दित रहेगा के महत्त्व को जानें यही हमारी संस्कृति की विशिष्टता और सनातन मूल्यों की पहचान है।

संसार को आनन्दमय बनाने के लिए समय समय पर महापुरुषों के अवतरण होते हैं


आइये आज दीपावली के सुअवसर पर हम

सन्मार्ग पर ही चलते रहने के लिए संकल्पित हों

व्यक्ति से व्यक्तित्व की यात्रा के लिए प्रयास करते रहें


दीपावली उत्साह उत्सव से भरा शुभ पर्व है, 

इसके लिए हम सब सनातनधर्मियों को गर्व है, 

दीपावली दुर्दांत के पददलन का सत्कर्म है, 

शौर्याग्नि से प्रज्वल प्रखर अध्यात्म का सद्धर्म है। 

हम सब उठें अपने बुझे दीपक जलाएँ शान से, 

श्रीराम स्वर उद्घोष कर फहराएँ ध्वज अभिमान से। 



आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हमारी युगभारती में केवल पं दीनदयाल विद्यालय के पूर्व छात्र ही सम्मिलित न रहें अपितु जो भी चिन्तक विचारक स्वाध्यायी राष्ट्रभक्त हों उन्हें भी सम्मिलित करें


इसके अतिरिक्त २१ सितंबर को लिखी कौन सी कविता आचार्य जी ने सुनाई भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें