प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 2 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२६ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ८
ब्रह्म वेला में जागरण, उचित खानपान,सत्संगति
हमारा भारत एक ऐसा अद्भुत राष्ट्र है जिसकी धरा पर ऋषि-मुनियों, वीरों, महान् चिन्तकों एवं मनीषियों ने जन्म लिया है। यह देश न केवल अध्यात्म एवं दर्शन की भूमि है, बल्कि शौर्य, ज्ञान और तपस्या की महान् परम्परा का भी संवाहक है। किन्तु जब कोई शिक्षित व्यक्ति ही इस देश की गरिमा को नकारते हुए यह कहता है कि इसमें कुछ भी विशिष्ट नहीं है, तो वह किसी भी मां भारती के सुपुत्र के लिए एक पीड़ाजनक स्थिति उत्पन्न करता है।
गरिमा को नकारने वाली सोच ने हमारे भीतर हीनभावना का आरोपण कर दिया है, जिसके कारण हम मानसिक रूप से दुर्बल, उत्साहहीन और आत्मविस्मृत हो गए हैं। केवल हम ही नहीं, अपितु हमने अपनी आगामी पीढ़ी को भी इस मानसिक शैथिल्य का भागीदार बना दिया है। हमें इस भाव से उबरकर अपनी संस्कृति, राष्ट्र और परम्परा के प्रति सम्मान, गौरव और आत्मबोध का जागरण करना चाहिए। यद्यपि कुछ उजास दिख रहा है तथापि अभी सतत प्रयास आवश्यक हैं
हम आत्मचिन्तन करें
और संसार से विरक्त होकर भागने के स्थान पर संसार-समर से सामञ्जस्य बैठाते हुए कर्मयोगी बनने का प्रयास करें प्रातःकाल ब्रह्मवेला में जागरण आवश्यक है उचित खाद्याखाद्य विवेक रखें सत्संगति आवश्यक है मानसिक रूप से जो व्यक्ति हमें दुर्बल बनाए वह भी हानिकारक है ऐसे व्यक्ति से बचें इन सबका हम ध्यान रखें अपने कार्य के प्रति अनुरक्ति रखें
इसके अतिरिक्त
साधना के मूर्तस्वरूप सर्वप्रिय अशोक सिंघल (15 सितम्बर 1926-17 नवम्बर 2015 )
जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की, डा मनीष वर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ
महापुरुषत्व क्या है
अधिवेशन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें