जथा अनेक बेष धरि नृत्य करइ नट कोइ।
सोइ सोइ भाव देखावइ आपुन होइ न सोइ॥ 72 ख॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या/ शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५४५ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २७
सुयोग्य सनातनी ग्रंथों का पाठ करें ताकि हमारे मन का मालिन्य दूर हो और अध्यात्म की ओर हमारा रुझान वृद्धिंगत हो
हमारे देश का परिवेश अनुपम दिव्य पावन है
कि इसकी प्रकृति मोहक मंजु अद्भुत अति सुहावन है
यहाँ पर भी न जिसका मन रमा, सचमुच अभागा है,
जगत के लोभ लाभों में भ्रमित बस एक धावन है।
(धावन का अर्थ संदेश वाहक )
हम अपने देश की मूल्यवान परम्पराओं और दिव्य विरासत को पहचानें, वरना जीवन की सच्ची पूँजी खो देंगे
कल दीपावली सम्पन्न हुई यह हमें जीवन के विविध पक्षों से जोड़ती है—भावना, परंपरा, यथार्थ और इतिहास।
यह केवल दीप प्रज्वलन का नहीं, बल्कि ऊर्जा और प्रेरणा का उत्सव है सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और चेतनात्मक पर्व के रूप में स्थापित यह दीपावली हमें अपने मूल्यों, परंपराओं और कर्तव्यों का स्मरण कराती है।
प्रभु राम का अवतरण सामान्य रूप से नहीं, अपितु एक गहन उद्देश्य से हुआ है। संसार में जब-जब अधर्म, अन्याय और पाप की सीमा बढ़ जाती है, तब उसे समाप्त करने के लिए स्वयं परमात्मा को अवतरित होना पड़ता है, क्योंकि देवता भी ऐसे संकटों से संसार को मुक्त कराने में असमर्थ होते हैं। भक्तों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना हेतु भगवान राम ने मनुष्य रूप में, राजा के रूप में अवतार लिया उनका जीवन एक सामान्य मनुष्य के अनुरूप होते हुए भी दिव्यता से पूर्ण है
भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।
किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥
प्राणिक ऊर्जा की क्या विशेषता है व्यामोहग्रस्त न हों इसके लिए क्या उपाय है भैया मनीष जी का उल्लेख क्यों हुआ श्री बालेश्वर जी का नाम किस संदर्भ में आया जानने के लिए सुनें