प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिप्रदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 22 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५४६ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २८
आध्यात्मिक एवं सांसारिक जीवन में इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए श्रद्धा और विश्वास अत्यन्त आवश्यक हैं
सामान्य मनुष्य में श्रद्धा एवं विश्वास का अभाव प्रायः देखने को मिलता है। इसी कारण वह न केवल अध्यात्म के क्षेत्र में उन्नति करने में असमर्थ रहता है, अपितु अपने सांसारिक जीवन में भी प्रायः इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता।
जो भी कार्य श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है, वह ईश्वर की कृपा को आकृष्ट करता है तथा साधक को वांछित फल प्राप्त कराता है। अतः जीवन में श्रद्धा एवं विश्वास का होना अत्यावश्यक है, क्योंकि यही हमारे प्रयासों को सिद्धि की ओर अग्रसर करते हैं।
तुलसीदास श्रद्धा और विश्वास को उमा और शिव का रूप मानते हैं और यह कहते हैं कि योग में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्ध भी बिना श्रद्धा और विश्वास के अंतर्स्थित ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकते।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
श्रद्धा और विश्वास के आधार पर युगभारती में हम सभी सदस्यों के मध्य जो प्रेम, अपनत्व और आत्मीयता का विकास हो रहा है, वह निःसंदेह अनुपम है और यह हमारे लिए सौभाग्य का विषय है। हम न केवल संगठन के बाह्य स्वरूप को, अपितु इसके तत्त्व और सत्त्व को भी भलीभाँति समझते हैं।
हमारे मन में यह अटूट श्रद्धा और अखंड विश्वास है कि हम सब एक ही दिव्य सत्ता की संतान हैं हम सहोदर यूं हैं कि हमारी माता भारतमाता हैं और परमात्मा ही हमारे परमपिता हैं।
हम अनादि हैं, अनन्त हैं। शरीर भले ही नश्वर हो, परंतु हम आत्मतत्त्व हैं, जो मृत्यु से परे है। हम केवल स्वरूप बदलते हैं हमारा लक्ष्य केवल सांसारिक उपभोग नहीं, अपितु उस अमरत्व की उपासना है, जिससे हमारा सनातन संबंध है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया
तुलसी की भक्ति और अभिव्यक्ति विलक्षण है
मानस में शिवत्व और रामत्व को एक रूप में प्रदर्शित किया
आचार्य प्रयाग जी का लहसुन वाला कौन सा प्रसंग है श्री के विभिन्न अर्थ क्या हैं जानने के लिए सुनें