संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥ 45॥
संत लोग ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण तथा मुनि आदि भी यही बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 23 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५४७ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं २९
व्यक्ति से व्यक्तित्व बनने के मार्ग पर आज और अभी से चलना प्रारम्भ कर दें
मनुष्य, एक जीव के रूप में, शारीरिक और मानसिक सीमाओं से बंधा हुआ है, उसकी आयु, बल, सामर्थ्य आदि की सीमाएं हैं। यह उसका "व्यक्ति" रूप है, जो ससीम अर्थात् सीमित है।
परंतु जब वही व्यक्ति अपने गुणों, विचारों, आचरण,सेवा,समर्पण और उद्देश्य के आधार पर विकसित होता है, तो वह "व्यक्तित्व" कहलाता है। यह व्यक्तित्व उसके भीतर निहित दिव्यता,प्रेम,आत्मीयता, सेवा, ज्ञान के कारण असीम हो सकता है। वह समाज को प्रेरणा देता है, युगों तक प्रभाव डालता है हमारा शारीरिक अस्तित्व सीमित हो सकता है, परन्तु हमारे विचार, गुण आदि असीमित हो सकते हैं।
कहने का तात्पर्य है व्यक्ति ससीम है व्यक्तित्व असीम हो सकता है इसी कारण पं दीनदयाल उपाध्याय विद्यालय के हम पूर्व छात्रों द्वारा संचालित संस्था युगभारती, जो एक प्रेरणा से उद्भूत विचार से अस्तित्व में आयी, का उद्देश्य है
*राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी "व्यक्तित्व" का उत्कर्ष*
हमने व्रत लिया कि हम केवल अपने लिए ही जीवन व्यतीत नहीं करेंगे हम देश के लिए समाज के लिए कुछ करेंगे क्योंकि देश और समाज के बिना हमारे अन्दर स्वर का अस्तित्व दिखेगा वाणी की विद्यमानता नहीं रहेगी भाव रहेगा विचार परिलक्षित नहीं होंगे
हमारी प्रार्थना अद्भुत है
जो हमें स्मरण कराती है कि यह समस्त संसार परमात्मा से आच्छादित है। इसलिए त्याग की भावना से हम इसका भोग करें और किसी के धन में लोभ मत रखें l हमें न राज्य चाहिए, न स्वर्ग और न ही मोक्ष। हम दुःख से पीड़ित प्राणियों के कष्टों का नाश करें l हम कामना करें कि सभी सुखी हों, निरोगी रहें l
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पं परमानन्द जी का कौन सा प्रसंग बताया भैया मनीष कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ सनातन धर्म क्या है जानने के लिए सुनें