उठो स्वदेशभक्त जागकर बढ़ो
स्वकर्ममय स्वधर्म पाठ को पढ़ो।
हवा विषाक्त हो रही समाज की
खबर बड़ी खराब सुबह आज की
हर तरफ नसीहतों का शोर है
कर्म के लिए प्रमाद घोर है
सीढ़ियाँ गिनो न बैठ उठ चढ़ो ||१||
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५५१ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ३३
आधुनिक युग में शक्ति के संदर्भों को भावी पीढ़ी को समझाने की योजना बनाएं
शक्ति सनातन धर्म की मूलाधार परम्परा है। यह केवल बाह्य सामर्थ्य नहीं, अपितु आत्मिक बल की प्रतीक भी है। शौर्य शक्ति का ही जाग्रत रूप है, जिससे युक्त आध्यात्मिक व्यक्ति न केवल स्वयं की, अपितु समस्त समाज की रक्षा करते हुए सम्पूर्ण सृष्टि में आश्वासन और सुरक्षा का भाव प्रसारित करता है।
शक्ति की आराधना भारत में आदिकाल से होती रही है विविध रूपों में, विशेषतः मातृशक्ति के रूप में। "भारत माता" का संबोधन उसी सनातन भाव का प्रकट रूप है। हम उसके वे पुत्र हैं जो उसके गौरव, मर्यादा और रक्षा का भार कंधों पर लेते हैं, न कि कुपुत्र के समान अज्ञानी,कायर या लोभी बनकर समाज पर बोझ बनते हैं।
शाक्त परम्परा इसी मातृशक्ति की उपासना है। श्रीरामकृष्ण परमहंस इसी परम्परा में सिद्ध महापुरुष थे, जो मां काली के साथ आत्मिक संवाद करते थे। उन्होंने शक्ति के महत्त्व को विवेकानन्द जैसे तेजस्वी शिष्य के माध्यम से जन-जन में प्रकट किया।
पूजा भाव भोग भाव में जब अवस्थित हो जाता है तो हम रावण हो जाते हैं
जिसकी परिणति है
इक लख पूत सवा लख नाती।
तिह रावन घर दिया न बाती॥
शक्ति के उपासक भगवान् राम ने उसका समूल नाश कर दिया
हिन्दुत्व सार्वभौम संरक्षण का विश्वास दिलाता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने *राम की शक्ति -पूजा* पुस्तक की चर्चा क्यों की, भैया अजय कृष्ण जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें