प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 4 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२८ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १०
लेखन महत्त्वपूर्ण है इसे नित्य करें
कात रहा था कब से जीवन के धागे
शायद कभी जरूरत पर कोई माँगे
लगा सूत का ढेर न चादर बुनी गयी
तरह-तरह की अनगिन बातें सुनी गयीं
चलो हटाओ उलझे सूत, विराम करो ।।५ ।।
बीत गया दिन..
आचार्य जी निरन्तर परिश्रम कर रहे हैं हम लोगों के चरित्र-निर्माण, राष्ट्रप्रेम, सनातन मूल्यों और सदाचार की स्थापना के लिए। उनकी यह साधना इसलिए कि जब कभी राष्ट्र या समाज को ऐसे व्यक्तित्वों की आवश्यकता हो तो वे सामने आ सकें। राष्ट्र और समाज के अंधकार को दूर कर सकेंl
किन्तु आचार्य जी को लग रहा है उस परिश्रम का अपेक्षित फल नहीं निकला। यद्यपि उन्होंने जीवनभर संस्कारों की प्रेरणा दी किन्तु कोई ठोस चरित्र, आदर्श जीवन या समाजोपयोगी निर्माण नहीं हुआ। उनके तप के स्थान पर केवल बातें हुईं, वाद-विवाद और व्यर्थ की चर्चाएँ हुईं, लेकिन आचरण नहीं बदला।
ऐसे में हम लोगों का दायित्व है कि हम अपनी भूमिकाओं को पहचानें और उसी के अनुसार कार्य करें आचार्य जी को यह पूर्ण विश्वास है कि प्रभात अवश्य होगा और जब प्रभात होगा, तो न केवल सूर्य का प्रकाश फैलेगा, बल्कि कर्म की चेतना भी जाग्रत होगी। मन में सृजन की ध्वनि गूँजेगी, भावनाएँ गहराई से उमड़ेंगी, भविष्य के निर्माण हेतु योजनाएँ बनेगीं। यह सब एक दृढ़ विश्वास के आलोक में होगा, जो समस्त दिशाओं को प्रकाशित करेगा और आशा, ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करेगा।
इसी कारण उनकी निम्नांकित भावनाएं प्रकट हो रही हैं
गीत गाते रहो गुनगुनाते रहो
साँस जब तक, सदा मुस्कराते रहो
गीत गाते रहो..
गुदगुदाती जगाती प्रभा प्रात में
थपकियाँ दे सुलाती अमा रात में
पालने में झुलाता खिलाता पवन
मृद मही गंध से महमहाता चमन
खिलखिलाते रहो महमहाते रहो
राग बैराग को भी सुनाते रहो ।।१।।
गीत गाते रहो...
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अरुण मिश्र जी १९९२, भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी, भैया मनीष कृष्णा जी, भैया पङ्कज जी, भैया प्रशान्त जी का उल्लेख क्यों किया आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति क्या है आत्मीयता और आत्मबोध में क्या संबन्ध है जानने के लिए सुनें