प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५२९ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ११
पुरुषार्थ के दर्शन करते हुए रामत्व की अनुभूति करें जो हमें स्मरण कराए कि हम सनातनधर्मी धर्मविपथगामी दुष्टों में भय व्याप्त करने हेतु निरंतर सजग धर्मरक्षक हैं।
हम अरण्य कांड के उस प्रसंग में चलते हैं जब लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा के नाक कान काट दिए
लछिमन अति लाघवँ सो नाक कान बिनु कीन्हि।
ताके कर रावन कहँ मनौ चुनौती दीन्हि॥17॥
श्री राम भांप लेते हैं कि अब युद्ध होगा क्यों कि वे द्रष्टा हैं स्रष्टा हैं भक्ति शक्ति विचार आदि सबका एक पुंजीभूत स्वरूप हैं अद्भुत है रामत्व
देखि राम रिपुदल चलि आवा। बिहसि कठिन कोदंड चढ़ावा॥7॥
हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥
रिपु बलवंत देखि नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥5॥
हम क्षत्रिय हैं, वन में शिकार करते हैं और तुम्हारे सरीखे दुष्ट पशुओं को तो ढ़ूँढते ही फिरते हैं। हम बलवान् शत्रु देखकर नहीं डरते। एक बार तो हम काल से भी लड़ सकते हैं॥5॥
श्रीराम द्वारा कही गई यह वाणी न केवल उनके अद्भुत शौर्य और क्षात्रधर्म की उद्घोषणा है, बल्कि यह भारत की आत्मा में निहित उस अपराजेय शक्ति की प्रतीक भी है, जो समय-समय पर विविध रूपों में प्रकट होती रही है श्रीराम की दृढ़ता यह दर्शाती है कि बलवान् शत्रु से भी भयभीत न होना ही सच्चे वीर की पहचान है। यही वह भाव है, जो भारतवर्ष की आत्मा में समाहित है।
भारत का यह रामत्व ही है, जिसने इसे समय के हर झंझावात, आक्रमण और आन्तरिक विषमताओं के पश्चात् भी जीवित और जाग्रत रखा है हर परिस्थिति में हम इसी भारतीयत्व रामत्व की अनुभूति करें
इस युद्ध में प्रभु राम का प्रथम रणकौशल परिलक्षित हुआ उन्होंने खर दूषण त्रिशरा सहित चौदह हजार शत्रुओं का वध कर दिया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परिवार भाव को कैसे स्पष्ट किया किस बैठक की चर्चा हुई चना खाने और अनुकूल लोगों का साथ से क्या तात्पर्य है जानने के लिए सुनें