कोउ किछु कहई न कोउ किछु पूँछा। प्रेम भरा मन निज गति छूँछा॥
तेहि अवसर केवटु धीरजु धरि। जोरि पानि बिनवत प्रनामु करि॥4॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 6 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५३० वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १२
प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें
इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य यह है कि हम जीवन के मूलभूत नैतिक सिद्धांतों से विमुख न हो।संसार की बाह्य भव्यता, आकर्षण और क्षणिक सुख-सुविधाएँ हमें प्रायः अपने वास्तविक पथ से विचलित कर देती हैं। चकाचौंध, भोग-विलास, तामसिक प्रवृत्तियाँ अथवा सांसारिक प्रलोभन, आत्मविकास और चरित्र-निर्माण की दिशा में बाधक बन सकते हैं। ऐसे में इन सदाचारवेलाओं द्वारा यह प्रयास होता है कि हम विवेकपूर्वक अपने लक्ष्य को पहचान सके, सत्पथ पर दृढ़ रहे, आत्मिक उन्नयन के पथ पर अग्रसर होते रहें, निराशा के चिन्तन से बचें, प्रेम और आत्मीयता का विस्तार करें ऐसा विस्तार जैसा हमें मानस में देखने को मिलता है
राम और भरत के मिलन (भरत भगवान् राम को लेने चित्रकूट गये हैं )में जो प्रेम उत्पन्न हुआ है, वह वाणी, मन और क्रिया से वर्णन करने में असंभव है। कवियों का समुदाय भी उस गूढ़ भाव को व्यक्त करने में असमर्थ है। यह मिलन ऐसा है जिसमें दोनों भाई पूर्णतः प्रेम से परिपूर्ण हैं; उनके भीतर से मन, बुद्धि, चित्त और 'अहम्' की भावना तक लुप्त हो गई है। वे पूर्णतः एक-दूसरे में तल्लीन हैं
मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी। कबिकुल अगम करम मन बानी॥
परम प्रेम पूरन दोउ भाई। मन बुधि चित अहमिति बिसराई॥1॥
नारी का सम्मान अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि नारी मात्र जाति या लिंग का परिचायक नहीं, अपितु वह सन्देश है उस दिव्य ऊर्जा का, जो समाज की संरचना, संवर्धन एवं सुसंस्कार में मुख्य प्रेरक तत्व है। अतः नारी का सम्मान केवल औपचारिक कर्तव्य न होकर, सांस्कृतिक चेतना एवं सामाजिक कृतज्ञता का उच्चतम प्रकट रूप होना चाहिए।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों किया ऋषि लोमश का प्रसंग क्यों आया महिरावण को किसने मारा जानने के लिए सुनें