7.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/ कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३१ वां* सार -संक्षेप

 प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्।


आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।2.55।।


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा/ कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 7 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३१  वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १३

संपूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण के साथ किसी भी कार्य को करें कर्म में पूर्णरूपेण विलीन होने वाले कर्मयोगी बनें



इस संसार में प्रत्येक क्रिया के पीछे कोई न कोई कारण निहित होता है। कारण और कार्य का परस्पर संबंध इस जगत् का स्वाभाविक विधान है। यही संबंध सृष्टि की गति को बनाए रखता है और यह गति ही संसार का यथार्थ स्वरूप है। सृष्टि का संचालन इसी कारण-कार्य के क्रम में अनवरत चलता रहता है।


हम जो भी कर्म करें, उसमें हमारी संपूर्ण निष्ठा, श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए। किसी भी कार्य को दुविधापूर्ण चित्त से करना न केवल कर्मफल को बाधित करता है, अपितु आत्मिक शांति और संतोष से भी हमें वंचित करता है। हमारा उद्देश्य  आत्मकल्याण,सामाजिक सेवा,आदि कुछ भी हो सकता है। विश्वास और धैर्य के साथ कर्म करते हुए यह दृढ़ भावना बनाए रखें कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, वह हमारी भलाई के लिए ही करता है। हमें केवल कर्तव्य-पथ पर अग्रसर रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना।जब मन में यह भाव स्थिर हो जाता है कि परमात्मा सदा शुभ करता है, तब जीवन में स्थिरता, शांति और गहन संतोष की अनुभूति होती है। यही आध्यात्मिक दृष्टि हमें संसार में रहते हुए भी आत्मा से संयुत रहने की प्रेरणा देती है।

 आचार्य जी ने बताया प्राणिक ऊर्जा यदि तत्त्वमय हो जाती है तो उसमें शक्ति का विकास हो जाता है

आचार्य जी  ने स्वामी रामसुखदास कृत साधक -संजीवनी हिन्दी -टीका की चर्चा करते हुए त्रिकुटी, त्रिपुटी,संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि, सबीज समाधि के अर्थ बताए, प्रभाकर जी (रौनक ) राम आधार जी (शास्त्री ) कौन हैं, ज्ञान दो वैराग्य दो भक्ति दो किसने कहा था जानने के लिए सुनें