8.10.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 8 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५३२ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 8 अक्टूबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५३२  वां* सार -संक्षेप

स्थान: सरौंहां

मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं १४ 

आत्ममन्थन करते हुए अपने कर्तव्यों को जानें


हमारे विद्यालय में आचार्यों का उद्देश्य मात्र पाठ्यक्रम की समाप्ति नहीं था। उन्होंने हम विद्यार्थियों के जीवन में केवल बौद्धिक ज्ञान भरने का प्रयास नहीं किया, अपितु वे हमारे अंतर्मन तक पहुंचे। उन्होंने हमारे संपूर्ण मानसिक, सामाजिक एवं आत्मिक परिवेश का सूक्ष्म अध्ययन किया। इसके पश्चात् वे हमें उस दिशा में प्रेरित करने लगे, जहाँ से हम अपने भीतर स्थित सामर्थ्य, प्रतिभा एवं ऊर्जा का साक्षात्कार कर सकें, यह अनुभूति कर सकें कि हम एक दिव्य चैतन्ययुक्त प्रकाश हैं उन्होंने ऐसा शिक्षोपदेश किया जिससे वह ऊर्जा समय के अनुकूल प्रकट होकर हमारे व्यक्तित्व के विकास तथा समाज और देश के हित में नियोजित हो सके समाज और देश को सशक्त बनाने में सहायक हो सके और हमें यशस्विता की ओर उन्मुख कर सके

आचार्य जी आज भी यही प्रयास कर रहे हैं कि हम सांसारिक चकाचौंध के विकारों से अपने को बचाते हुए सन्मार्ग पर चलें, एक शिक्षक की भूमिका निभाते रहें और यशस्विता प्राप्त करें



आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त गीता के छठे अध्याय में ११, १२, १३, १४ छंद को पढ़ने का परामर्श दिया, सी जे आई भूषण रामकृष्ण गवई और अधिवक्ता राकेश किशोर का उल्लेख क्यों हुआ, अखंड भारत के चित्र की चर्चा किस प्रसंग में हुई भैया सिद्धार्थ सिंह जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें