10.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 10 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५६५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 10 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५६५ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४७

प्रतिदिन समीक्षा करते हुए हम दैनन्दिनी लिखें


यह संसार विविध घटनाओं का एक समुच्चय है। जो व्यक्ति इन घटनाओं के अंतरंग रहस्यों को जानकर उनके मूल तत्त्व को समझ लेते हैं, वे संसार की गूढ़ता में प्रवेश करते हैं और उसी अनुपात में पूज्य एवं महनीय बन जाते हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ही विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपने भाव, विचार एवं क्रिया से एक तपस्वी का जीवन जिया। उनका जीवन सरल था, किंतु उसमें गहराई थी — वे सहज थे, परंतु उनका व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली और प्रेरणादायक था।


पंडित दीनदयाल जी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या से आहत होकर बूजी ने उनके स्मरण और उनके आदर्शों की चेतना को जीवित रखने हेतु पं. दीनदयाल विद्यालय की स्थापना का संकल्प लिया। यह विद्यालय मात्र एक औपचारिक शिक्षण संस्था नहीं है, बल्कि इसका निर्माण एक पवित्र उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ — वह उद्देश्य था पं. दीनदयाल जी के जीवन-मूल्यों, विचारों और एकात्म मानववाद के आदर्शों का पल्लवन और प्रसार।

 यह विद्यालय एक वैचारिक केंद्र है, जो चरित्र निर्माण, राष्ट्रसेवा और समाजोन्मुखी जीवन मूल्यों की शिक्षा देने हेतु समर्पित है।

ऐसे विद्यालय के हम पूर्व छात्रों को अपना उद्देश्य विस्मृत नहीं करना चाहिए 

हमारा उद्देश्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष

ऐसे व्यक्तित्व के लिए चिन्तन, मनन, अध्ययन, स्वाध्याय,निदिध्यासन, ध्यान, व्यायाम, लेखन अत्यन्त आवश्यक है

यदि हम अपने ग्रंथों का अध्ययन करते हैं तो कभी व्याकुल नहीं होंगे 

श्रीरामचरित मानस जिसे वाङ्मय अवतार कहना अतिशयोक्ति नहीं है एक ऐसा ही ग्रंथ है जिसे तुलसीदास जी ने अकबर के शासन में विद्यमान विषम परिस्थितियों में प्रस्तुत किया तुलसीदास जी ने भक्ति में शक्ति का प्रवेश अनिवार्य माना


तुलसीदास जी की रामकथा हमें यह बोध कराती है कि अध्यात्म कोई पलायन नहीं है,जीवन की चुनौतियों का समत्वभाव से सामना करते हुए, धर्म के मार्ग पर अडिग रहना ही सच्चा अध्यात्म है शौर्य से अनुप्राणित अध्यात्म ही समाज और राष्ट्र के लिए अनिवार्य है।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया जहां मस्तिष्क प्रधान हो जाता है मन संकुचित होने लगता है वहां व्यक्ति का व्यक्तिव कुंठित होने लगता है व्यक्ति व्याकुल रहने लगता है 

पारायण विधि की चर्चा क्यों हुई आचार्य जे पी जी के पौत्र का उल्लेख क्यों हुआ भावनाओं से हम दूर कैसे हो जाते हैं जानने के लिए सुनें