प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 11 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६६ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४८
आपस में हम एक दूसरे से संपर्कित रहने के अधिक से अधिक प्रयास करें
जन्म से ही हम हिन्दूजन सहिष्णुता, श्रद्धा एवं प्रेम के भाव से युक्त होते हैं। यही गुण हमारे सांस्कृतिक वैभव की विशेषता तो हैं, परन्तु इसी कारण हम छल, कपट और शत्रुता के शिकार भी अनेक बार बनते हैं। दुष्टों की स्वाभाविक प्रवृत्ति ही है सन्मार्ग पर चलने वालों को हानि पहुँचाना और धर्ममार्ग में विघ्न उत्पन्न करना। अतः हम सनातन धर्म के अनुयायियों को, जो कहते हैं
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।,
चाहिए कि ऐसे कुटिल प्रवृत्तियों से युक्त व्यक्तियों के प्रति सदैव सावधान एवं सजग रहें। ये रक्तबीज
(रक्तबीज असुरों में एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसे वरदान प्राप्त था कि उसके शरीर से गिरे प्रत्येक रक्तकण से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाएगा।देवी काली ने अपना विशाल रूप धारण कर उसका रक्त गिरने से पहले ही पी लिया और उसकी उत्पन्न होने वाली प्रत्येक प्रति को नष्ट कर दिया। अंततः रक्तबीज का संपूर्ण विनाश हुआ।)
सदृश प्रवृत्तियाँ, जो एक के नष्ट होने पर अनेक रूपों में उत्पन्न होती हैं, समाज में अराजकता, भ्रम एवं अधर्म का विस्तार करती हैं। इन्हें पहचानने, निरस्त करने एवं उनके प्रभाव से समाज की रक्षा हेतु सुसंगठित, जागरूक एवं सशक्त सामाजिक संरचना की परम आवश्यकता होती है।
इसीलिये संगठन का महत्त्व अत्यन्त उच्च हो जाता है। संगठन केवल जनसमूह का एकत्रीकरण नहीं, यह शक्ति ही कालान्तर में धर्मरक्षक बनकर समाज को पुनः तेजस्विता प्रदान कर सकती है। समाज को जागरूक कर सकती है l युगभारती का यही रूप है l हमारा लक्ष्य ही है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
संगठन का मूल आधार प्रेम और विश्वास है l इसके लिए आचार्य जी ने कुछ सूत्र बताए जैसे व्यक्तिगत रूप से हम अपने बीच के कुछ परिवारों से संयुत रहें,संपर्क के साधनों के आधार पर संपर्क साधें आदि तो इनसे संगठन शक्तिशाली बनेगा इनका सातत्य संगठन को आदर्श संगठन के रूप में स्थापित करेगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पुनीत जी की चर्चा क्यों की शिक्षा की क्या भूमिका है आदि जानने के लिए सुनें