9.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 9 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५६४ वां* सार -संक्षेप

 सांगठनिक रूप से भगवान् राम के अवतरण की अनुभूति की जाए और कुछ लोग संकल्पित हो जाएं तो......


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 9 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५६४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४६

हम आचार्य जी के लिए रत्न स्वरूप हैं, अतः यह आवश्यक है कि हमारी प्रतिभा और क्षमता निष्फल न हो, अपितु सार्थक दिशा में प्रयुक्त हो



 आचार्य जी का यह स्पष्ट संदेश है कि हम अपने कर्तव्यों की गहन अनुभूति करें और उन्हें पूर्ण निष्ठा से निभाएँ।


("तू भारत का गौरव है¸

तू जननी–सेवा–रत है।

सच कोई मुझसे पूछे

तो तू ही तू भारत है॥46॥)

जन्म और मृत्यु इस संसार का अपरिहार्य सत्य है। किंतु जब हम अपने आत्मतत्त्व की अनुभूति कर लेते हैं, तब यह बोध होता है कि हम केवल इस नश्वर शरीर तक सीमित नहीं हैं। हम उस चैतन्य के अंश हैं जो जन्म और मृत्यु से परे है — जो नित्य, शाश्वत और अविनाशी है।

ऐसी अनुभूति होने पर जीवन के परिवर्तनशील पक्ष हमें विचलित नहीं करते। हम सुख-दुःख, हानि-लाभ, जन्म-मरण जैसी घटनाओं को समत्वभाव से देख पाते हैं। आत्मतत्त्व की यह चेतना हमें स्थिरता, विवेक और शांति प्रदान करती है।

वर्तमान संसार में निराशा का विस्तार और आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या वास्तव में अत्यन्त चिन्तनीय विषय है। इसका मूल कारण मनुष्य का अपने आत्मिक तत्त्व से विच्छिन्न होना है।

इस संसार में परिस्थितियाँ और समस्याएँ सदा विद्यमान रहती हैं, वे अपने स्वरूप में सत्य हैं। किन्तु इनसे विचलित हुए बिना, स्थिर चित्त और दृढ़ संकल्प के साथ हमें अपने लक्षित पथ की ओर अग्रसर होना चाहिए। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम बाधाओं को पार करते हुए उत्तरदायित्व का निर्वाह करें और अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निरन्तर प्रयत्नशील रहें। जिस प्रकार भगवान् राम रहे 


सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥

हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥


हे गिरिजा !  सुनिए, वेद-शास्त्रों ने हरि के अनेक सुंदर, विस्तृत  निर्मल चरित्रों का गान किया है। हरि का अवतार जिस कारण से होता है, वह कारण 'बस यही है' ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता (अनेक कारण हो सकते हैं और ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्हें कोई जान ही नहीं सकता)।

 हम यह समझें कि संगठन शक्ति है शक्ति में भक्ति होनी चाहिए और जब भक्ति अनुरक्ति में परिवर्तित होती है तो उसके परिणाम विलक्षण होते हैं और यह संभव तब है जब इसमें सातत्य होगा

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया पत्नी वही जो पति को पतन से रोक दे 

भैया पंकज जी की किस पुस्तक का उल्लेख हुआ भैया प्रवीण सारस्वत जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें