जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के ll
राम के गुण-समूह जगत् का कल्याण करने वाले और मुक्ति, धन, धर्म और परमधाम के देने वाले हैं।
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 12 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६७ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४९
अपने ग्रंथों जैसे श्रीरामचरित मानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि की दिव्य शिक्षाएँ हमारे मन में उस आत्मविश्वास का संचार करती हैं, जिससे हम अपने कर्तव्यों को निर्भयतापूर्वक निभा सकें।अतः हमें इनका अध्ययन अवश्य करना चाहिए l
आचार्य जी आज भी हमारे लिए पूर्णतः प्रासंगिक हैं, क्योंकि उनका व्यक्तित्व और विचार हमें केवल मार्गदर्शन ही नहीं देते, बल्कि हमारे अंतर्मन में आत्मविश्वास का संचार करते हैं। वे जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और विवेक बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।
उनकी वाणी और शिक्षाएँ हमें संकटों से पलायन नहीं, अपितु उनका डटकर सामना करने की युक्तियाँ प्रदान करती हैं। वे यह बोध कराते हैं कि प्रत्येक चुनौती आत्मविकास का अवसर है। अतः आचार्य जी केवल एक युगपुरुष नहीं, अपितु आज भी हमारे जीवन में प्रेरणास्रोत के रूप में सक्रिय हैं। हमें ऐसे सहयोग का सुयोग प्राप्त है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए l तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
हम समाज के एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं, यह बोध हमें अवश्य होना चाहिए। यदि हम पराश्रयता से बचना चाहते हैं, तो आत्मदीप्ति अत्यन्त आवश्यक है।हमें सदैव इस बात का प्रयास करना चाहिए कि हमारा मनोबल क्षीण न हो, क्योंकि यही मनोबल हमें कठिन परिस्थितियों में स्थिर बनाए रखता है। यह मनोबल अकेले नहीं बनता, अपितु साथियों और सहयोगियों से उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त करता है।यह कथन अत्यन्त सारगर्भित है — "सङ्घे शक्तिः कलौ युगे"
संगठित प्रयास, सामूहिक चेतना और पारस्परिक सहयोग ही समाज की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। संगठन जिसका आधार प्रेम आत्मीयता और विश्वास है इसलिए आवश्यक है क्योंकि हमारे देश पर इस समय संकट है हमें आसपास घटित हो रही गतिविधियों पर भी ध्यान रखना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने फरीदाबाद की चर्चा क्यों की,मन की भूख से क्या होता है, संगठन के लिए क्या क्या आवश्यक है जानने के लिए सुनें