प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 13 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६८ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५०
हनुमान् जी के दर्शन करें दर्शन के साथ उनके कार्यों का ध्यान करें तो शक्ति ज्ञान भक्ति विश्वास प्राप्त होगा
जब हम अपनी स्मृतियों में लौटते हैं और स्वयं को उस विशाल कक्ष में उपस्थित मानते हैं, तो यह अनुभूति जाग्रत होती है कि वहीं हमें समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने की प्रेरणा दी जाती थी। वह स्थान केवल एक भौतिक कक्ष नहीं था, अपितु एक चेतना-स्थली था, जहाँ कर्तव्य, सेवा और आत्मबल की भावना उत्पन्न होती थी।
और यह सब कुछ घटित होता था हनुमान जी की साक्षात् उपस्थिति में जिनकी वह मूर्ति नहीं, बल्कि उनका सजीव प्रेरक स्वरूप हमारे सामने होता था। वे केवल भक्ति के प्रतीक नहीं, अपितु बल, विवेक, विनय और कर्म के भी प्रतीक हैं जिनका स्मरण और आराधन जीवन को शक्ति, श्रद्धा और निर्भयता से भर देता है।
यदि हनुमान जी को हम शुद्ध भाव से, श्रद्धा और निष्कपटता से भजें, तो उनका कृपा-संवेदन अवश्य प्राप्त होता है और आन्तरिक बल मिलता है
हमारे भीतर गोस्वामी तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप जैसे महापुरुषों की चेतना विराजमान् है। इसका तात्पर्य यह है कि जो गुण, संकल्प, साहस, भक्ति और राष्ट्रनिष्ठा इन विभूतियों में विद्यमान थी, वही बीजों के रूप में हमारे भीतर भी निहित हैं। हमारे अंतर्मन में ज्ञान, विज्ञान, पौरुष, शक्ति और भक्ति — सबका अद्भुत सामंजस्य विद्यमान है।
यद्यपि इन महापुरुषों के तत्त्व को पूर्णतः जान पाना सहज नहीं है, किन्तु हमें उन्हें केवल बौद्धिक स्तर पर जानने का प्रयास नहीं करना चाहिए, अपितु उनके आदर्शों और चेतना की अनुभूति अपने जीवन में करनी चाहिए। यदि हम ऐसा कर पाते हैं, तो यह न केवल आत्मकल्याण का मार्ग होगा, अपितु समाज और राष्ट्र के लिए भी प्रेरणादायी होगा।
इसके बाद हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उस अनुभव, उस तत्त्व, उस शक्ति और उस विश्वास का प्रसार करें। केवल अपनी कमाई, सुविधा और व्यक्तिगत लाभ में ही जीवन को खपा देना समय का अपव्यय है। जीवन को सार्थक वही बनाता है जो अपनी शक्तियों का उपयोग समाज, संस्कृति और राष्ट्र की सेवा में करता है।
'गायत्री मन्त्रार्थ ' पुस्तक की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि गायत्री प्राणों की प्रेरणा है प्राण को परिपोषित संपोषित शक्तिमान् बनाने का आधार है गायत्री
जो प्राणों की रक्षा करे वो गायत्री है
बूजी प्रार्थना के लिए कौन सा स्थान चाहती थीं जम्मू के एक विद्यालय का उल्लेख क्यों हुआ भैया मुकेश जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें