14.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 14 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५६९ वां* सार -संक्षेप

 जलते जीवन के प्रकाश में अपना जीवन तिमिर हटायें

उस दधीची की तपः ज्योति से एक एक कर दीप जलाएं


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 14 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५६९ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५१


आत्मीयता केवल एक भाव नहीं, बल्कि भारतीय जीवनदृष्टि का मूल आधार है, जो समाज और संगठन दोनों को स्थायित्व और सामर्थ्य प्रदान करता है।अतः अपने संगठन युगभारती में प्रेम और आत्मीयता के विस्तार का यथासंभव प्रयास करें l



आत्मीयता जीवन का मूल तत्त्व है, यह भारत की आत्मा, उसका प्राण है। भारतीय संस्कृति में संबंधों की गहराई, सहजता और भावनात्मक निकटता को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। जब हम अत्यधिक औपचारिक होने लगते हैं, तो अनजाने में ही लोगों से दूरी बनाने लगते हैं। औपचारिकता सम्बन्धों में कृत्रिमता लाती है, जबकि आत्मीयता संबंधों को जीवंत और सार्थक बनाती है।


विदेशों में निवास करने वाले भारतीयों को यह बात विशेष रूप से खलती है कि वहाँ के सामाजिक वातावरण में आत्मीयता का अभाव रहता है। यथार्थ में, वही क्षण उन्हें भारत की स्मृति से जोड़ते हैं, जहाँ संबंध केवल औपचारिकता पर आधारित नहीं होते, बल्कि भाव और अपनत्व से जुड़े होते हैं।


संगठन के सन्दर्भ में भी यह सत्य है कि अत्यधिक औपचारिकता संगठनात्मक जीवन के लिए बाधक बनती है। संगठन तभी सशक्त और जीवंत रहता है, जब उसमें आत्मीयता, सहयोग और पारस्परिक समझ का भाव हो। हमारे जीवन-संस्कार हमें यही सिखाते हैं कि हम संबंधों को केवल नियमों और मर्यादाओं से न बांधें, बल्कि आत्मीयता और विश्वास से पोषित करें।


१ अक्टूबर १९१८ को जन्मे श्री भिड़े जी की चर्चा आचार्य जी ने क्यों की,उड़ीसा का प्रसंग आचार्य जी ने क्यों बताया,भैया यशवन्त राव देशमुख जी का उल्लेख क्यों हुआ,संगठन में समरस होने के लिए क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें