तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 15 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५७० वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५२
जिस भावी पीढ़ी के लिए जीवन का प्रमुख लक्ष्य केवल उच्च वेतन (पैकेज) प्राप्त करना बन गया है, उसकी दुविधाओं को समाप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। यह तभी संभव है जब हम उन्हें सही दिशा, जीवन के उच्च आदर्श, कर्तव्यबोध और आत्मबोध से परिचित कराएँ।
हमें अपने तेजस्वी एवं गौरवशाली अतीत पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। हमारा इतिहास केवल पराधीनता की कथा नहीं है, बल्कि वह संघर्ष, आत्मबल और सतत प्रयास का प्रतीक है।
हमारा मूल उद्देश्य यह होना चाहिए कि समाज में जो असहाय, निराश्रित और उपेक्षित हैं, उनका हाथ थामें। यह केवल दया का कार्य नहीं, अपितु हमारी संस्कृति और धर्म की मूल भावना है
हमारा धर्म वह है जो सबके प्रति आत्मीयता से भरा हुआ है यह धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, अपितु जीवनदृष्टि है जिसमें देशभक्ति, अध्यात्म, शौर्य और शक्ति का समन्वय है।
हमें चाहिए कि हम अपनी परम्पराओं और अपने वास्तविक इतिहास को जानें, उसका आदर करें और उसमें विश्वास रखें। यह चिन्तन पक्ष हो। उसी के साथ कर्मपक्ष में भी हमें सक्रिय रहना चाहिए समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करने का सतत भाव रखना चाहिए।
अपने मन में भ्रम उपजाने वाली दोषी शिक्षा -विधि को संशोधित करने की आवश्यकता है
इसके लिए चिन्तन, मनन, आत्मशक्ति का संवर्धन और संगठित प्रयास अत्यावश्यक हैं। संगठन ही शक्ति है, और वही समाज को स्थायित्व और उन्नति प्रदान करता है।
हमें अत्यन्त निकृष्ट, संकीर्ण और आत्मकेंद्रित स्वार्थ से दूर रहना चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों किया, बिहार चुनाव के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें