16.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 16 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५७१ वां* सार -संक्षेप

 अवध प्रभाव जान तब प्रानी। जब उर बसहिं रामु धनुपानी॥


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 16 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५७१ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५३


हम अपनी सन्ततियों को स्वावलम्बी,आत्मविश्वासी, पुरुषार्थी,पराक्रमी  बनाने का प्रयास करें उन्हें सनातन धर्म की विशेषताओं से परिचित कराएं,उनके भय और भ्रम को दूर करें


आचार्य जी इन सदाचार-वेलाओं के माध्यम से दीर्घकाल से हमें मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। 

यह हमारा सौभाग्य है कि हमें उनके विचार, अनुभव और सत्प्रेरणा का लाभ निरंतर प्राप्त हो रहा है।हमने अपना लक्ष्य भी बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष 

जीवन कितना दीर्घ है, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है; वह कितना प्रकाशपूर्ण, सार्थक और प्रेरणादायक है, यही वास्तविक महत्त्व रखता है।  


हमारे भीतर विविध प्रकार की शक्तियाँ और दुर्बलताएँ स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती हैं। जीवन का उद्देश्य होना चाहिए कि हम अपनी आन्तरिक शक्तियों को पहचानें, उनका विकास करें और दुर्बलताओं पर नियंत्रण प्राप्त करें। 


इन शक्तियों को जाग्रत करने तथा परखने के लिए आवश्यक होता है कि हम जीवन में कुछ नियम और संयम स्थापित करें। जब हम इनका पालन श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं, तो हमारे भीतर स्थित शक्तियाँ क्रमशः प्रकट होने लगती हैं, और उनका प्रभाव हमारे आचरण, सोच और कर्म में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है  


जब इस प्रकार की उच्च भावनाएँ और विचार हमारे अंतर्मन में विकसित होंगे, हमारा चरित्र तेजस्वी एवं विशिष्ट रूप में प्रकट होगा, तब हम अपनी सन्ततियों को भी आत्मविश्वासी, पुरुषार्थी, श्रद्धावान्, पराक्रमी और देशभक्त बना सकेंगे।


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का उल्लेख क्यों किया Noida की एक बैठक की चर्चा क्यों की, अधिकार-यात्रा से क्या आशय है, किसी सेठ हंसराज सावला की चर्चा किस कारण हुई जानने के लिए सुनें