कथा कविता कहानी भावनाओं की निशानी है ,
कि भारत में सभी किरदार राजा और रानी हैं ।
सभी दुख-दर्द के मारे बेचारे जूझते उठते,
मगर संघर्ष में टूटे नहीं सब स्वाभिमानी हैं ॥
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 18 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५७३ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५५
जब हम अपने भारतवर्ष के साहित्य को सरल रूप में अपनी सन्ततियों को समझाएँगे, तो वे अपनी परम्परा और आत्मस्वरूप से परिचित होकर आत्मबोध प्राप्त करेंगे। इससे वे न भ्रमित होंगे, न भयभीत और न ही जीवन में भटकेंगे
भारतवर्ष का साहित्य अत्यन्त प्राचीन, गहन, व्यापक और जीवनदर्शी है। इसकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं और यह न केवल धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से, बल्कि दर्शन, विज्ञान, नीति, कला और जीवनशैली के स्तर पर भी अत्यन्त समृद्ध है।
श्री रामचरितमानस भारतीय साहित्य में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान रखता है।यह ग्रंथ अवधी भाषा में लिखा गया, जिससे यह आम जनमानस तक पहुँचा। मानस ने पूरे देश में भक्ति और धर्म की भावना को सहज रूप से पहुँचाया।
मरुत कोटि सत बिपुल बल रबि सत कोटि प्रकास।
ससि सत कोटि सुसीतल समन सकल भव त्रास॥91 क॥
अरबों पवन के समान भगवान् राम में महान् बल है और अरबों सूर्यों के समान प्रकाश है। अरबों चंद्रमाओं के समान वे शीतल और संसार के समस्त भयों का नाश करने वाले हैं॥ऐसे हैं भगवान् राम
बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥90 क॥
बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री राम जी पिघलते नहीं और श्री रामजी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शांति नहीं पाता॥90 (क)॥
जब हम अपने भारतवर्ष के साहित्य ग्रंथों पर गहरा विश्वास रखते हुए उसे सरल भाषा में अपनी सन्ततियों को समझाएंगे, तब वे उस महान् परम्परा से परिचित हो सकेंगे जिसने भारत को कभी विश्वगुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित किया था।
ऐसा करने से हमारी भावी पीढ़ियाँ न केवल अपनी सांस्कृतिक जड़ों को समझ सकेंगी, बल्कि आत्मबोध से युक्त होकर जीवन में स्पष्टता और आत्मविश्वास प्राप्त करेंगी।
तब वे न तो भयभीत होंगी, न भ्रमित और न ही मार्ग से भटकेंगी। वे दृढ़ता, विवेक और सुस्पष्ट दिशा के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ा सकेंगी।
क्योंकि यह संसार सभी मनुष्यों के लिए एक परीक्षा-भूमि के समान है, जहाँ अनेक कष्ट और कठिन समस्याएँ सामने आती हैं। ये समस्याएँ इतनी जटिल होती हैं कि सामान्य बुद्धि भ्रमित हो जाती है और व्यक्ति विचलित होने लगता है।
किन्तु आत्मबल और विवेक से युक्त होकर हमारी संततियां इन कठिन प्रश्नों को सहजता से हल कर पाएंगी
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