19.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी /अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 19 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५७४ वां* सार -संक्षेप

 हम लोग खिलौने हैं एक ऐसे खिलाड़ी के 

जिसको अभी सदियों तक ये खेल रचाना है


विधाता की प्रकृति सर्वत्र अपने गुल खिलाती है

समूची सृष्टि को उसके रचे झूले झुलाती है


प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष चतुर्दशी /अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 19 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५७४ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५६

अपनी धुन के पक्के बनिए और लक्ष्य पर ध्यान रखिए



आचार्य जी नित्य एक ऐसी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हैं जिससे हमें शक्ति शौर्य  पराक्रम विश्वास आस्था भक्ति धैर्य  शोभा संयम दृढ़ता तप त्याग आत्मस्थता आत्मबल की अनुभूति होती है और हमें जीवन बोझिल नहीं लगता साथ ही हमारे मानसिक विकार भी दूर होते हैं


यह संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा-स्थल है

 दुःख है, प्रश्न कठोर देखकर होती बुद्धि विकल है 

किंतु स्वात्म बल-विज्ञ सत्पुरुष ठीक पहुँच अटकल से

 हल करते हैं प्रश्न सहज ही अविरल मेधा-बल से


हमें यह भ्रान्ति नहीं पालनी चाहिए कि अध्यात्म  शान्तिपूर्वक विश्राम करने या निष्क्रिय रहने का संदेश देता है। वास्तव में, हम कर्मयोगी हैं निरन्तर जागरूक, सक्रिय और उद्देश्यनिष्ठ। अतः लक्ष्य की प्राप्ति तक हमें विश्राम नहीं करना चाहिए।  


हमारा उद्देश्य केवल स्वयं आनन्द में रहना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संसार को आनन्दमयी दृष्टि और जीवन प्रदान करना है।  


हमारे जीवन-दर्शन का मूल वाक्य "वसुधैव कुटुम्बकम्" सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानने की भावना देता है। किन्तु जब दुष्ट, शोषक या अहितकारी शक्तियाँ इस शान्ति को भंग करने का प्रयास करें, तो उनके प्रतिकार हेतु शौर्य, शक्ति, पराक्रम, सजगता एवं संगठन की अनिवार्यता होती है। तपस्या का व्रत लेकर चले भगवान् राम  जिनका लक्ष्य था दुर्दान्त को नष्ट करना हमें इसी की प्रेरणा देते हैं

सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥

बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥


ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥

दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने संपूर्ण संसार को विद्यालय जैसा क्यों कहा

सिक्किम की यात्रा में एक वैद्य का उल्लेख क्यों हुआ

दादागुरु की चर्चा क्यों हुई

समय -सारणी  से भैया विनय वर्मा जी को आचार्य जी ने कैसे संयुत किया

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