चिन्तन मनन शक्ति संवर्धन और संगठन करना है
हर प्रयास से हिन्दु राष्ट्र को आत्मशक्ति से भरना है
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 20 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५७५ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५७
प्रत्येक सनातनधर्मी जागरूक,आत्मविश्वासी, सक्षम बने, जिससे हमारा राष्ट्र सशक्त, सजीव और दीर्घकालिक रूप से उन्नत बन सके।
हमें चिन्तन और मनन के माध्यम से अपनी चेतना को जाग्रत करना है, आत्मविश्लेषण द्वारा अपने उद्देश्य को स्पष्ट करना है। इसके साथ ही, आत्मबल, सामर्थ्य और योग्यता का संवर्धन करना है, ताकि हम व्यक्तिगत तथा सामाजिक स्तर पर अधिक समर्थ बनें।हमारे अन्दर देशभक्ति की भावना स्पष्ट रूप से विद्यमान रहे किन्तु देशभक्ति केवल भावना मात्र नहीं होनी चाहिए, अपितु उसमें शौर्य का तेज भी समाहित होना चाहिए। ऐसा शौर्य, जो राष्ट्र की रक्षा, मर्यादा और स्वाभिमान के लिए सतत जागरूक एवं सक्रिय हो l देशभक्ति में अध्यात्म की उपस्थिति अनिवार्य है। अध्यात्म व्यक्ति को संयम, विवेक, त्याग और सेवा की भावना प्रदान करता है, जिससे उसका शौर्य केवल उग्र नहीं, बल्कि मर्यादित, उद्देश्यपूर्ण और रचनात्मक बनता है।
युगभारती के रूप में हमारा संगठन है संगठन का वास्तविक अर्थ यह है कि हम सब मिलकर, परस्पर सहयोग और उत्तरदायित्व की भावना के साथ, उस उद्देश्य की निरन्तर चिन्ता करें जिसे हमने सामूहिक रूप से स्वीकार किया है।
यदि हम सांसारिक समस्याओं, व्यक्तिगत उलझनों या तात्कालिक कठिनाइयों में फँसकर अपने मुख्य कार्य को टालते या स्थगित करते हैं, तो संगठन की शक्ति क्षीण हो जाती है। संगठन तभी सशक्त रहता है जब प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य के प्रति सजग, निष्ठावान् और सतत सक्रिय रहता है।
किसी सांसारिक व्यवहार को आदर्श रूप में कैसे प्रस्तुत किया जाता है इसके लिए आचार्य जी ने एक प्रसंग बताया वह प्रसंग क्या था भैया आशु शुक्ल जी और भाभी भावना जी, भैया प्रमोद जी, भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ साकल्य की किस कविता की चर्चा हुई अपने देश के अनुसंधानों को न जानने से क्या हानि होती है जानने के लिए सुनें