21.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 21 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५७६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 21 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५७६ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ५८


अध्ययन स्वाध्याय करने के पश्चात् हमारे लिए जाग्रत होने सतर्क सचेत सक्रिय रहने की अत्यन्त आवश्यकता है क्योंकि परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं



हमारी संस्था *युगभारती'* चार प्रमुख आयामों पर कार्य कर रही है— शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सुरक्षा। इनमें शिक्षा मूल आधार है, क्योंकि शेष तीनों आयाम उसी पर निर्भर हैं।  


यदि व्यक्ति सुशिक्षित होता है, तो वह संस्कारित होता है। संस्कारों से युक्त व्यक्ति विचारशील होता है, और विचारशीलता ही उसके व्यवहार को मर्यादित, अनुशासित और समाजोपयोगी बनाती है।  


ऐसे संस्कारित, विचारयुक्त और उत्तम व्यवहार वाले व्यक्ति हर स्थान पर उपयोगी सिद्ध होते हैं। समाज में जागृति भी तब ही आती है जब ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ती है।


हमारे स्वर्णकाल में शिक्षा ही हमारी विशेषता थी। उसी के बल पर हम त्यागी, तपस्वी, वीर, पराक्रमी और कर्मयोगी बनते थे। साथ ही, हम अनुसंधान, उत्पादन और नवाचार में भी अग्रणी थे। यही कारण था कि सम्पूर्ण विश्व में भारत की प्रतिष्ठा थी और हम विश्वगुरु के रूप में सम्मानित थे।


इसलिए आज भी यदि हम शिक्षा को केन्द्र में रखें और उसके साथ जीवन-मूल्य जोड़ें, तो राष्ट्र की पुनः वही गरिमा स्थापित हो सकती है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस में शिक्षा, संस्कार, आचरण और समाजोत्थान के सूत्रों को अत्यन्त गूढ़, किन्तु सहज रूप में प्रस्तुत किया है। शिक्षा का उद्देश्य केवल अर्जन नहीं, आत्मविकास और लोककल्याण भी है आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम मानस का अरण्य कांड अवश्य पढ़ें

किन्तु इस प्रकार का अध्ययन स्वाध्याय करने के पश्चात् हमारे लिए जाग्रत होना भी अनिवार्य है हम केवल इन्हें कल्पनालोक में विचरण के लिए ही न छोड़ दें परिस्थितियां अत्यन्त विषम हैं हमें जाग्रत होने सतर्क सचेत सक्रिय रहने की अत्यन्त आवश्यकता है अपने संगठनों को सशक्त बनाना भी अनिवार्य है हम जहां भी हैं वहां हमारी आंच लगनी चाहिए 


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त आचार्य श्री वीरेन्द्र जी की चर्चा क्यों की परसों लखनऊ में होने वाली बैठक के लिए क्या परामर्श दिया  भैया विवेक चतुर्वेदी जी भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें