24.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 24 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५७९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 24 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५७९ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६१

हमें हर चीज का उपभोग त्याग की भावना से करना चाहिए 



धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।

अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥

जो व्यक्ति न धर्माचरण करता है, न अर्थोपार्जन करता है, न जीवन में कोई उद्देश्यपूर्ण कामना रखता है और न ही मोक्ष की ओर अग्रसर होता है, उसका जीवन केवल जन्म लेकर समाप्त हो जाने वाला निष्फल जीवन है।


मनुष्य देह प्राप्त कर कभी न दैन्य को वरो 

यह कर्मयोनि है स्वकर्म धर्म मानकर करो


हमारा एक धर्म आत्मधर्म भी है आत्म को पहचानना ही अध्यात्म है


हमें जब यह अनुभूति होती है कि वह परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है, यह जगत् भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है, इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत् पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है तो अध्यात्म का द्वार हमारे स्वागत के लिए खुला रहता है  और तब हम संकटों में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं जब परमात्मा संसार की सांसारिकता समेट लेता है तो आत्मदर्शन होता है आत्म के लिए सांसारिक वस्तुओं  का त्याग कर देना चाहिए।

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल संपन्न हुई बैठक की चर्चा की 

एकांत कब अच्छा लगता है भैया अरविन्द तिवारी जी की चर्चा विशेष रूप से किस कारण हुई  भैया राघवेन्द्र जी १९७६ आदि  का उल्लेख क्यों हुआ सूर्यास्त के समय आचार्य जी क्या विचार कर रहे थे जानने के लिए सुनें