प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 25 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५८० वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६२
हमारा इतिहास विविध आयामों से युक्त, बहुरंगी और गौरवशाली रहा है। हमें अपने वास्तविक इतिहास को जानने की आवश्यकता है, ताकि वर्तमान परिस्थितियों से जूझने और उन्हें समझने का मार्ग प्राप्त हो सके।समय-समय पर भारतवर्ष में ऐसे महापुरुष अवतरित होते रहे हैं, जिन्होंने समाज को दिशा दी — जैसे आदि शंकराचार्य, आचार्य चाणक्य, डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी आदि । *पुरखों का वह जाज्वल्यमान यश मलिन कर रहीं संतानें* तो हमें अपनी संतानों को मार्गदर्शन देने की भी आवश्यकता है ताकि उनके भ्रम दूर हों
मनुष्य का मनुष्यत्व विनाशकारी न होकर सृजनशील होता है, परन्तु यह सर्जना तभी सार्थक होती है जब विकृति या विद्रूपता का विनाश किया जाए।
विकृति का विनाश और सौंदर्य या स्वरूप का निर्माण ही सृष्टि का सनातन नियम है।
हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार ।
उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार ।।
यही सनातन धर्म जिसने मनुष्य को उसके प्राणों की अनुभूति कराई जिसने विद्या और अविद्या दोनों को संसार का सत्य बताया जिसके अनुसार पूरी वसुधा ही हमारा कुटुम्ब है का वास्तविक स्वरूप है।
जो यह विवेक न रखता हो कि क्या शुभ है और क्या अशुभ, क्या उचित है और क्या अनुचित — वह वस्तुतः मनुष्य कहलाने योग्य नहीं है।
जो मनुष्य अपने जीवन में किसी भी सद्गुण, धर्म, शिक्षा, तप, ज्ञान या सेवा को नहीं अपनाता, वह केवल शरीर से मनुष्य है, भीतर से वह जड़ और निष्क्रिय है — समाज और पृथ्वी पर बोझ है
हम भारतभक्तों को इससे इतर मनुष्यत्व की अनुभूति करनी चाहिए हमें अपने सनातन धर्म के वैशिष्ट्य की पहचान होनी चाहिए हमारे भीतर वह आग लगनी चाहिए हमारी जवानी जागनी चाहिए ताकि हम हर गांव गली में घूमने वाले जयचंदों के काफिले नष्ट करते चलें, हमें भारत की भास्वरता के लिए प्रयास करना है
इसके लिए नित्य हम चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन व्यायाम में रत हों उचित खाद्याखाद्य का विवेक रखें उचित संगति का ध्यान रखें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने विवेक चूडामणि की चर्चा क्यों की पजनवी कौन था जानने के लिए सुनें