प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 26 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५८१ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६३
उत्कृष्ट भावनाओं को कर्मों में परिवर्तित करें
हमारे मन में जो संवेदनाएँ (भाव) उत्पन्न होती हैं, उनसे विचार जन्म लेते हैं और वे विचार आगे चलकर क्रियाओं का रूप लेते हैं।जब हम समाज में कार्य करते हैं, बोलते हैं या व्यवहार करते हैं, तब हमारे भीतरी भाव और विचार ही बाहरी क्रियाओं के रूप में प्रकट होते हैं।इस प्रकार,हमारा सम्पूर्ण जीवन चाहे वह अंतर का हो या बाह्य इन तीनों के समन्वय से चलता है। यदि यह संगम संतुलित और सकारात्मक हो, तो जीवन भी सुसंस्कृत, उद्देश्यपूर्ण और कल्याणकारी बनता है।
आचार्य जी यही नित्य प्रयास करते हैं कि हम इन्हें संतुलित और सकारात्मक बनाएं हमारे विचार ऐसे हों जो पूज्य हों हमें विचारों के झंझावातों में उलझना नहीं चाहिए अन्यथा हम व्यथित ही रहेंगे
इस देश और समाज ने हमें सभ्यता, संस्कार आदि प्रदान किए हैं इसलिए हमारा नैतिक और कर्तव्यबोध यह होना चाहिए कि हम भी देश और समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाएँ और उसके उत्थान में योगदान दें।
इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए हमारी संस्था का जो ध्येय-वाक्य है उसके अनुसार राष्ट्र और समाज के प्रति हमारे अन्दर पूर्ण समर्पण, आस्था और सेवा की भावना होनी चाहिए l हमें अनुशासित भी रहना चाहिए क्योंकि अनुशासन से ही संस्था शक्तिमती बनती है l हमें अपने भीतर के कादर्य को नष्ट करने के लिए संकल्पित रहना चाहिए संस्था को सशक्त बनाने के लिए हम सदस्यों के बीच आत्मीयता प्रेम पल्लवित होना चाहिए
हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानें, *"चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्"* की अनुभूति करें
न कि यह कहें
*मैं अपरिचित स्वयं से ही हो गया हूं*
हमारे भीतर यह भाव स्थिर हो जाए कि *परमात्मा ही सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ और सर्वत्र व्याप्त है*, तो हमारा मन स्थिर रहेगा, भय दूर होगा और जीवन में संतुलन व शांति बनी रहेगी। ऐसा विश्वास हमें अध्यात्म की ओर ले जाता है और जीवन में धैर्य, श्रद्धा व समर्पण की भावना जाग्रत करता है। अध्यात्म में शौर्य अवश्य ही सम्मिलित होना चाहिए अन्यथा संघर्षों में हम घबरा जाएंगे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने धर्म ध्वजा की चर्चा में क्या कहा, गुरुजी पर लिखी कौन सी कविता जो *अपने दर्द मैं दुलरा रहा हूं* की कविता संख्या ३३ है सुनाई जानने के लिए सुनें