27.11.25

प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 27 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण *१५८२ वां* सार -संक्षेप मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६४

 प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८२  तदनुसार 27 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण

  *१५८२ वां* सार -संक्षेप


मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ६४

यह वायवीय सदाचार वेला लगभग दस वर्षों से निरंतर संचालित हो रही है। इसका उद्देश्य है ऐसे सदाचारमय विचारों का प्रसार करना, जो केवल विचार न रहकर व्यवहार में परिणत हों। 


 


जब ये सदाचारयुक्त विचार हमारे जीवन में आचरण के रूप में उतरते हैं, तभी वे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र — तीनों के लिए श्रेयस्कर सिद्ध होते हैं।  


इस सतत प्रयास के माध्यम से एक सजग, सुसंस्कृत और उत्तरदायी नागरिक चेतना के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है तो आइये इसके महत्त्व को समझते हुए प्रवेश करें आज की वेला में


आचार्य जी श्री रामचरित मानस के *अरण्यकाण्ड* अर्थात् वन के कांड को ध्यानपूर्वक पढ़ने का परामर्श  प्रायः देते हैं 


अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन॥1॥



 क्योंकि यह काण्ड मानव जीवन के संघर्षों और पुरुषार्थ की उत्कृष्ट झलक प्रस्तुत करता है।  


मनुष्य के जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट, संकट आते हैं और दुःखद घटनाएँ  घटित होती हैं। इन परिस्थितियों में एक पुरुषार्थी व्यक्ति किस प्रकार धैर्य, विवेक और मर्यादा के साथ उनका सामना करता है — यह अरण्यकाण्ड में भगवान् श्रीराम के जीवन से भलीभाँति समझा जा सकता है।  


श्रीराम हैं तो भगवान् किन्तु नरलीला कर रहे हैं, उन्हें पुरुषोत्तम कहा गया है — अर्थात् पुरुषों में श्रेष्ठ। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि पुरुषार्थ (साहस, कर्तव्य, धैर्य और सत्कर्म) ही मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है।  


राम का पुरुषार्थ केवल बल या बुद्धि तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें मर्यादा,त्याग और धर्मनिष्ठा भी सम्मिलित है।  

देवता भोगयोनि है और मनुष्य कर्मयोनि है

देवताओं के राजा इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर श्री रघुनाथजी का बल देखना चाहता है। जैसे महान् मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो॥3॥


सुरपति सुत धरि बायस बेषा। सठ चाहत रघुपति बल देखा॥

जिमि पिपीलिका सागर थाहा। महा मंदमति पावन चाहा॥3॥


वह मूढ़, मंदबुद्धि कौआ सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भागा। जब रक्त बह चला, तब श्री रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर सींक का बाण संधान किया॥4॥

यह घटनाएं कपोल कल्पना नहीं है हमें इन पर विश्वास करना चाहिए 

जिसके मन में आत्मविश्वास जाग्रत हो जाता है वह पुरुषार्थ करने में घबराता नहीं है और समस्याओं को कभी अनदेखा नहीं करता l

India कौन कहता है

भारतवर्ष की संपत्ति क्या है  रावण को मारने के लिए सीता जी की आवश्यकता को आचार्य जी ने कैसे स्पष्ट किया जानने के लिए सुनें