नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥
(ऐसे कराल काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब विभ्रमों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक के माता पिता हैं)
प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 5 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६० वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४२
Society के विकारों से प्रभावित न होकर Society पर अपने सद्विचारों का प्रभाव डालें
युग -भारती के रूप में हम लोगों का संगठित स्वरूप संपूर्ण सनातनधर्मी समाज के लिए आशा की एक सशक्त किरण है। अतः आवश्यक है कि हम स्वयं को श्रेष्ठ बनाएँ। यदि हमारे भीतर सात्विकता का भाव नहीं जागा, हमारे विचारों में गांभीर्य और सत्त्व नहीं आया और तप, त्याग, सेवा, समर्पण की भावना विकसित नहीं हुई—तो हमारा उद्देश्य अधूरा रह जाएगा।
हम यह स्वीकारते हैं कि हमारा व्यक्तित्व समाजोन्मुखी है, अर्थात् हम केवल अपने लिए नहीं, अपितु समाज के लिए जीते हैं। परंतु यह समाजोन्मुखता तभी सार्थक होगी जब वह आचरण और आत्मसंयम से पुष्ट हो। केवल शब्दों से नहीं, अपितु कर्म, भाव और जीवनशैली से हमें यह प्रमाणित करना होगा कि हम समाज के लिए सचमुच उपयोगी हैं और सनातन मूल्यों के संवाहक हैं।
इस प्रकार, हमारी व्यक्तिगत शुद्धता और आत्मिक परिष्कार ही समाज के कल्याण के पथ को प्रशस्त करेगा।इसमें हमें विभ्रमित नहीं रहना चाहिए हमें अपने को पहचानना चाहिए l
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्....
यदि हम किसी के कहने मात्र से प्रभावित होकर उसके विकारों को अपनाने लगते हैं,यह कहें कि Society में ऐसा चलता है तो यह बुद्धिमत्ता से रहित आचरण है। उचित तो यह है कि हमारा प्रभाव उस व्यक्ति पर पड़े, जिससे वह अपने दोषों को त्यागकर सद्गुणों के मार्ग पर अग्रसर हो। हमें स्वयं इतना सशक्त और स्थिर बनना चाहिए कि हम दूसरों को श्रेष्ठता की ओर प्रेरित कर सकें, न कि स्वयं उनकी दुर्बलताओं से प्रभावित होकर विचलित हों।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
हम रामत्व की अनुभूति करें भगवान् राम ने प्रेम आत्मीयता का विस्तार किया संगठन किया समाज के भय और भ्रम को दूर किया और एक महाशक्ति को पराभूत कर दिया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किसी उमेश जी की चर्चा क्यों की, बैच २००० के रजत जयन्ती कार्यक्रम के लिए क्या परामर्श दिया जानने के लिए सुनें