प्रस्तुत है *आचार्य श्री ओम शङ्कर जी* का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८२ तदनुसार 7 नवंबर 2025 का सदाचार संप्रेषण
*१५६२ वां* सार -संक्षेप
मुख्य विचारणीय विषय क्रम सं ४४
समाज के अंदर अपना विश्वास वृद्धिंगत करने का प्रयास करें
हम आचार्य जी की वाणी और विचारों को सुनकर प्रेरणा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। यह विचारणीय विषय है कि क्या हमने वास्तव में कुछ प्राप्त किया है? यह चिन्तन का विषय है कि श्रवण मात्र से जीवन में परिवर्तन सम्भव है या उसे आत्मसात् कर कर्मरूप में परिणत करना आवश्यक है।उत्तर है कर्मरूप में परिणति
वर्तमान कालखण्ड में राष्ट्र की परिस्थितियाँ नितान्त विषम एवं जटिल हैं। ऐसे संकटकाल में यदि हम निष्क्रिय रहकर बाह्य-आश्रय की प्रतीक्षा करें, तो वह उचित नहीं कहा जा सकता। हम मनुष्य हैं, अतः हमें अपने भीतर निहित मनुष्यत्व की साक्षात् अनुभूति करनी चाहिए। हमारा देश एक अद्भुत राष्ट्र है जो प्राणिजगत् में मनुष्य को उसके वास्तविक मनुष्यत्व का बोध कराता है।
मनुष्य में सुप्त मानवोचित गुणों को जाग्रत करने हेतु काल-कालान्तर में ऐसे महामानवों का अवतरण होता रहा है, जो समस्त लौकिक लाभ, लोभ तथा स्वार्थ से रहित होकर समाज को आध्यात्मिक उन्नयन की दिशा प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ भगवान् राम जिन्होंने विभिन्न स्थानों पर जाकर जनसमूह का संगठन किया और रावण जैसे आततायी का वध किया, जिसने समाज में भय फैलाया था। संगठन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है संगठन और एकत्रीकरण में अन्तर है
संगठन में परिश्रम समर्पण त्याग लगता है
दैन्य में भी उत्साह रहे यही संगठन का प्राण है सिद्धान्त है
हम अपने संगठन का उद्देश्य ध्यान में रखें हमें राष्ट्र को वैभवशाली बनाना है अखंड भारत का स्वरूप हमारा लक्ष्य है जो व्यक्ति हमारी सेवा से लाभान्वित हो रहा है वह हमारे साथ खड़ा हो इसका प्रयास करें हमारे ऊपर विश्वास करे ऐसी प्राणिक ऊर्जा समाज को देने के लिए हमको उससे संपर्क रखना होगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैच प्रमुख के उत्तरदायित्व बताए, भैया पंकज जी, भैया पुनीत जी का उल्लेख क्यों किया, संगठन को सशक्त बनाने के लिए बैठक कब होगी जानने के लिए सुनें